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चूलियाए गदियाग दियाए रइयाणं गदीओ
१, ९–९, ७८. ]
सुगममेदं ।
दो गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदिं चैव मणुसगदिं चेव'
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देव- रइयगदीओ ण गच्छति । किं कारणं १ सभावादो । सो वि तेसिं सहाओ कुदो वदे ? एदम्हादो चेव सुतादो ।
तिरिक्खेसु आगच्छंता पंचिंदिएस आगच्छंति, णो एइंदियविगलिदिए ॥ ७८ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उक्त नारकी जीव दो गतियोंमें आते हैं- तिर्यंचगतिमें भी और मनुष्य गतिमें भी ॥ ७७ ॥
नरक से निकले हुए जीव देव व नरक गतिको नहीं जाते ।
शंका - नरक से निकले हुए जीवोंका देव या नरक गतिमें न जानेका कारण क्या है ?
समाधान - ऐसा स्वभाव ही है ।
शंका- ऐसा उनका स्वभाव ही है यह बात भी कहांसे जानी जाती है ।
समाधान - प्रस्तुत सूत्रसे ही यह बात जानी जाती है कि नरकसे निकले हुए जीवोंका देव या नरक गतिमें न जाना स्वाभाविक है ।
तिर्यंचोंमें आनेवाले नारकी जीव पंचेन्द्रियों में आते हैं, एकेन्द्रियों या विकलेन्द्रियोंमें नहीं आते ॥ ७८ ॥
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१ णिक्कता रियादो गन्भेसुं कम्मसणिपज्जत्ते । णरतिरिए जम्मदि ॥ ति. प. २, २८९. षड्भ्य उपरिपृथिवीभ्यो मिथ्यात्व सासादनसम्यक्त्वाभ्यामुद्वर्तिताः केचित्तिर्यङ्मनुष्यगतिमायान्ति । तिर्यश्वायाताः पंचेन्द्रियगर्भजसंज्ञिपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुः षूत्पद्यन्ते नेतरेषु । त. रा. ३, ६. सुरणिरया णरतिरियं छम्मासवसिगे सगाउस । णरतिरिया सव्वाउं तिभागसेसम्म उक्कस्सं || भोगभुमा देवाउं छम्मासवसिट्ठगे य बंधंति । इगिविगला नरतिरियं ते उदुगा सत्तगा तिरियं ॥ गो. क. ६३९-६४०.
२ नारकाणां सुराणां च विरुद्धः संक्रमो मिथः । नारको न हि देवः स्यान देवो नारको भवेत् ॥ वार्थसार, २, १५५.
३ प्रतिषु णो इंदियविगलिंदिएस ' इति पाठः ।
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