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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, ७१. केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ७१ ॥ केइं सम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ७२ ॥ केइं सम्मत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ७३ ॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि ।
मणुस-मणुसपज्जत्तएसु संखेज्जवस्साउएसु सम्मत्तेण पविट्ठदेव-णेरइयाणं कधं सासणसम्मत्तेण णिग्गमो होदि ति उत्ते उच्चदे । तं जहा- देव-णेरइयसम्मादिट्ठीणं मणुसेसुप्पज्जिय उवसमसेडिमारुहिय पुणो हेट्ठा ओयरिय सासणं गंतूग मदाणं सासणगुणेण णिग्गमो होदि । ( एवं सासणसम्मागुण मणुस्सेसु पविसिय सासणगुणेण णिग्गमो वत्तव्यो, अण्णहा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण कालेग विणा सासणगुणाणुप्पत्तीदो । एद पाहुडसुत्ताभिप्पाएण भणिदं । जीवट्ठाणाभिप्पाएण पुण संखेज्ज
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित जाकर सम्यक्त्व सहित निकलते है ॥ ७१ ॥
कितने ही जीव सम्यक्त्व सहित जाकर मिथ्यात्वके साथ निकलते हैं ॥७२॥
कितने ही जीव सम्यक्त्व सहित जाकर सासादनसम्यक्त्वके साथ निकलते हैं ॥ ७३ ॥
ये सूत्र सुगम हैं।
शंका-संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य व मनुष्य-पर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व सहित प्रवेश करनेवाले देव और नारकी जीवोंका वहांसे सासादनसम्यक्त्वके साथ किस प्रकार निर्गमन होता है ?
समाधान-इस शंकाका समाधान किया जाता है। वह इस प्रकार है-देव और नारकी सम्यग्दृष्टि जीवोंका मनुष्यों में उत्पन्न होकर, उपशमश्रेणीका आरोहण करके, और फिर नीचे उतरकर सासादन गुणस्थान में जाकर मरनेपर सासादन गुणस्थान सहित निर्गमन होता है।
इसी प्रकार सासादन गुणस्थान सहित मनुष्योंमें प्रवेश कर सासादन गुणस्थानके साथ ही निर्गमन भी कहना चाहिये, अन्यथा पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके विना सासादन गुणस्थानकी उपपत्ति बन नहीं सकती । यह बात प्राभृतसूत्र (कषायप्राभृत) के अभिप्रायानुसार कही गई है। परंतु जीवस्थानके अभिप्रायसे संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्योंमें सासादन गुणस्थान सहित निर्गमन
१ तस्सम्मत्तद्धाए असंजमं देससंजमं वापि । गच्छेन्जावलिछक्के सेसे सासणगुणं वापि ॥ लब्धि. ३४५,
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