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१, ९-९, ७०. ] चूलियाए गदियागदियाए पवेस-णिग्गमणगुणट्ठाणाणि [४४३
एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । एदेसु सम्मत्तेण अधिगमो णत्थि । कुदो ? एदस्स अच्चंताभावादो।
मणुसा मणुसपज्जत्ता सोधम्मीसाणप्पहुडि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु केई मिच्छत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥६६॥
केई मिच्छत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति॥ ६७ ॥ केई मिच्छत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ६८॥ केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ६९ ॥ केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥७॥
ये सूत्र सुगम हैं। इन गतियों में सम्यक्त्वके साथ प्रवेश नहीं होता, क्योंकि सम्यक्त्व अवस्थामें इन गतियोंकी प्राप्तिका अत्यन्ताभाव है।
मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त तथा सौधर्म-ईशानसे लगाकर नौ ग्रेवेयक विमानवासी देवोंमें कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित जाकर मिथ्यात्वके साथ ही वहांसे निकलते हैं ॥६६॥
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित पूर्वोक्त गतियों में जाकर सासादनसम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६७ ॥
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित पूर्वोक्त गतियोंमें जाकर सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६८ ।।
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित जाकर मिथ्यात्व सहित निकलते हैं ॥ ६९॥
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित जाकर सासादनसम्यक्त्वके साथ ही निकलते हैं ॥ ७० ॥
१ अप्रतौ ‘समिच्छत्तेण ' आ-कप्रत्योः ‘सम्मामिच्छत्तेण ' इति पाठः ।
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