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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, ६१. पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीयो मणुसिणीयो भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च मिच्छतेण अधिगदा केइं मिच्छत्तेण णीति ॥ ६१ ॥
केई मिच्छत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ६२॥ केई मिच्छत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ६३ ॥
एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । सव्वत्थ सम्मामिच्छत्तेण णिग्गमो पवेसो वा णत्थि, तस्स मरणुप्पत्तीणमसंभवादो।
केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ६४ ॥
केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥६५॥ ............
पंचन्द्रिय तिर्यंच योनिनी, मनुष्यनी, भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देव तथा देवियां एवं सौधर्म-ईशानकल्पवासिनी देवियां मिथ्यात्व सहित अपनी अपनी गतिमें प्रवेश करके कितने ही मिथ्यात्व सहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ६१॥
कितने ही मिथ्यात्व सहित प्रवेश करके अपनी गतिसे सासादन सम्यक्त्वके साथ निकलते हैं ॥ ६२ ॥
कितने ही मिथ्यात्व सहित प्रवेश करके सम्यक्त्वके साथ उस गतिसे निकलते हैं ॥ ६३ ॥
ये सूत्र सुगम हैं। सब गतियोंमें सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके साथ न निर्गमन होता है और न प्रवेश, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वके साथ मरण और उत्पत्ति दोनों
असंभव हैं।
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्वके साथ पूर्वोक्त गतियोंमें आकर मिथ्यात्व सहित वहांसे निकलते हैं ॥ ६४ ॥
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्वके साथ पूर्वोक्त गतियों में आकर सम्यक्त्व सहित वहांसे निकलते हैं ॥ ६५ ॥
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१ अ-आप्रयोः 'जोणीयो' इति पाठः ।
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