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१, ९-९, ६०.] चूलियाए गदियागदियाए पबेस-णिग्गमणगुणट्ठाणाणि [४४१ ।
केई मिच्छत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ५५॥ केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ५६ ॥ केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥५७॥ केइं सासणसम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ५८॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । सम्मत्तेण अधिगदा णियमा सम्मत्तेण चेव णीति ॥ ५९॥
खइयसम्माइट्ठीणं कदकरणिज्जवेदगसम्माइट्ठीणं वा तिरिक्खगइगयाणं गुणतरसंकमणाभावा ।
(एवं) पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता ॥६०॥ सुगममेदं ।
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित तिर्यंचगतिमें आकर सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते है ॥५५॥
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित तिर्यंचगतिमें आकर मिथ्यात्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ५६ ॥
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित तिर्यंचगतिमें आकर सासादनसम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥५७॥ .
कितने ही जीव सासादनसम्यक्त्व सहित तिर्यंचगतिमें आकर सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं । ५८ ॥
ये सूत्र सुगम हैं।
सम्यक्त्व सहित तिर्यंचगतिमें आनेवाले जीव नियमसे सम्यक्त्वके साथ ही वहांसे निकलते हैं ॥ ५९॥
___क्योंकि, क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका व कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टियोंका तिर्यंचगतिमें जानेपर अन्य गुणस्थानमें संक्रमण नहीं होता ।
इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच और पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त जीव तिर्यचगतिमें प्रवेश और निष्क्रमण करते हैं ॥ ६० ॥
यह सूत्र सुगम है।
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