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४३८ ]
छक्खडागमे जीवाणं
[ १, ९-९, ४६.
कुदो ! मिच्छत्तेण णिरयगदिं पविस्सिय सगट्ठिदिमणुपालिय पुणो अवसाणे पढमसम्मत्तं पडिवज्जिय आसाणं गंतूण णिष्फीडमाणेजीवाणमुवलंभा ।
hi मिच्छत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ४६ ॥
कुदो ! मिच्छत्तेण सह णिरयगदिं गंतूण तत्थ सम्मत्तं पडिवज्जिय तेण सम्मतेण सह णिष्पीडमाणजीवाणमुवलंभा ।
सम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण चैव णीति ॥ ४७ ॥
कुदो ? तत्थुप्पण्णखइयसम्माइट्ठीणं कदकरणिज्जवेदगसम्माइट्टीणं वा गुणंतरसंकमणाभावा । सासणसम्माइट्ठीणं च णिरयगदिम्हि पवेसो णत्थि एत्थ पवेसा - पदुप्पायणअण्णहाणुववत्तीदो' ।
क्योंकि, मिथ्यात्वके सहित नरकगतिमें प्रवेश करके और वहां अपनी स्थिति पूरी करके पुनः अन्तमें प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त कर व सासादन गुणस्थान में जाकर नरक से निकलनेवाले जीव पाये जाते हैं ।
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित नरकमें जाकर सम्यक्त्व सहित वहांसे निकलते ह्वै ॥ ४६ ॥
क्योंकि, मिथ्यात्वसहित नरकगतिमें जाकर और वहां सम्यक्त्व प्राप्त करके उसी सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलनेवाले जीव पाये जाते हैं ।
सम्यक्त्व सहित नरक में जानेवाले जीव सम्यक्त्व सहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ४७ ॥
क्योंकि, नरक में उत्पन्न हुए क्षायिक सम्यग्दृष्टियों के अथवा कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टियों के अन्य गुणस्थान में संक्रमण नही होता । और सासादनसम्यग्दृष्टियों का नरकगति में प्रवेश ही नहीं है, क्योंकि यहां प्रवेशके प्रतिपादन न करनेकी अन्यथा उपपत्ति नहीं बनती ।
१ आप्रतौं ' णिपीडमाण' कप्रतौ 'णिष्फडिमाण-' इति पाठः ।
२ मिथ्यात्वेनाधिगता केचित् सम्यत्तत्वेन । त. रा. ३, ६.
३ केचित्सम्यत्तत्वेनाधिगताः सम्यत्तत्वेनैव निर्यान्ति क्षायिक सम्यग्दृष्टयपेक्षया । त. रा. ३, ६.
४ न सासादन गुणवतां तत्रोत्पत्तिस्तद्गुणस्य तत्रोत्पत्या सह विरोधात् ॥ षट्खं. १, १, २५. भाग १, पं. २०५. ण सासणो णारयापुण्णे । गो. जी. १२८. णिरयं सासणसम्मो ण गच्छदिति । गो. क. २६२.
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