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________________ १, ९-९, ५१. ] चूलियाए गदियागदियाए पवेस - णिग्गमणगुणट्टाणाणि एवं पढमाए पुढवीए रइया ॥ ४८ ॥ सुगममेदं । विदियाए जाव छट्टीए पुढवीए णेरड्या मिच्छत्तेण अधिगदा hi मिच्छत्ते ( णीति ) ॥ ४९ ॥ निरयगादिगयाणं' मिच्छत्तेण सह णिस्सरणे विरोहाभावा । मिच्छत्तेण अधिगदा केई सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ५० ॥ कुदो ! मिच्छत्तेण सह विदियादिपंचपुढवीउवगयाणं अवसाणे पढमसम्मत्तं पडिवज्जिय आसाणं गंतूण णिष्पीडणे विरोहाभावा । मिच्छत्तेण अधिगदा के सम्मत्तेण णीति ॥ ५१ ॥ इस प्रकार प्रथम पृथिवी में नारकी जीव प्रवेश करते और वहांसे निकलते हैं ॥ ४८ ॥ यह सूत्र सुगम है । दूसरी पृथिवीसे लगाकर छठवीं पृथिवी तकके नारकी जीव मिथ्यात्व सहित जाकर कितने ही मिथ्यात्व सहित ही निकलते हैं ॥ ४९ ॥ क्योंकि, नरकगतिको जानेवाले जीवोंके वहांसे मिथ्यात्वसहित निकलने में तो कोई विरोध ही नहीं आता । मिथ्यात्व सहित द्वितीयादि नरकमें जाकर कितने ही जीव सासादन सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ५० ॥ [ ४३९ क्योंकि, मिथ्यात्व के साथ द्वितीयादि पांच पृथिवियोंमें जाकर अन्तमें प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त कर और फिर आसादन गुणस्थानमें जाकर नरकसे निकलने में कोई विरोध नहीं आता । मिथ्यात्व सहित द्वितीयादि नरक में जाकर कितने ही जीव सम्यक्त्व सहित वहांसे निकलते हैं ।। ५१॥ Jain Education International १ द्वितीयादिषु पंचसु नारका मिथ्यात्वेनाधिगताः केचिन्मिथ्यात्वेन निर्यान्ति । त रा ३, ६. २ आप्रतौ ' णिरयगदिणेरइयाणं ' अ-कप्रत्योः ' णिरयगदिरयाणं ' इति पाठः । ३ मिथ्यात्वेनाधिगताः केचित्सासादनसम्यत्तत्वेन निर्यान्ति । त. रा. ३, ६. ४ मिथ्यात्वेन प्रविष्टाः केचित् सम्यत्तत्वेन निर्यान्ति । त. रा. ३, ६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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