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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, ४२. दोहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेंति- केइं जाइस्सरा, केइं सोऊण ॥४२॥
एत्थ महिद्धिदंसणं णस्थि, उवरिमदेवाणमागमाभावा । जिणमहिमदंसणं पि णत्थि, गंदीसरादिमहिमाणं तेसिमागमणाभावा । ओहिणाणेण तत्थट्ठिया चेव जिणमहिमाओ पेच्छंति ति जिणमहिमादसणं वि तेसिं सम्मत्तुप्पत्तीए णिमित्तमिदि किण्ण उच्चदे ? ण, तेसिं वीयरायाणं जिणमहिमादसणेण विभयाभावा । कधं तेसिं धम्मसुणणसंभवो ? ण- तेसिं अण्णोण्णसल्लावे संते अहमिंदत्तस्स विरोहाभावा ।
नौ ग्रैवेयकविमानवासी मिथ्यादृष्टि देव दो कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं-कितने ही जातिस्मरणसे और कितने ही धर्मोपदेश सुनकर ॥४२॥
नौ अवेयकोंमें महर्द्धिदर्शन नहीं है, क्योंकि यहां ऊपरके देवोंके आगमनका अभाव है। यहां जिनमहिमादर्शन भी नहीं है, क्योंकि प्रैवेयकविमानवासी देव नन्दीश्वरादिके महोत्सव देखने नहीं आते ।
शंका-प्रैवेयक देव अपने विमानोंमें रहते हुए ही अवधिज्ञानसे जिनमहिमाओंको देखते तो हैं, अतएव जिनमहिमाका दर्शन भी उनके सम्यक्त्वकी उत्पत्तिमें निमित्त होता है, ऐसा क्यों नहीं कहा ? |
__ समाधान-नहीं, क्योंकि अवेयकविमानवासी देव वीतराग होते हैं, अतएव जिनमहिमाके दर्शनसे उन्हें विस्मय उत्पन्न नहीं होता।
शंका-प्रैवेयकविमानवासी देवोंके धर्मश्रवण किस प्रकार संभव होता है ?
समाधान -नहीं, क्योंकि उनमें परस्पर संलाप होनेपर अहमिन्द्रत्वसे विरोध नहीं आता । (अतएव वह संलाप ही धर्मोपदेश रूपसे सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण हो आता है)।
विशेषार्थ-तिलोयपण्णत्तिमें सामान्यसे समस्त कल्पवासी देवोंके सम्यक्त्वोत्पत्तिके चारों ही कारणों का प्रतिपादन किया गया है, और नौ ग्रैवेयकोंमें देवर्द्धिदर्शनको छोड़कर शेष कारणोंका।
१ नववेयकवासिनां केषाश्चिज्जातिस्मरणं केषाविद्धर्मश्रवणम् । स. सि. १, ७. २ प्रतिषु · जिण वि महिमादसणं' इति पाठः। ३ प्रतिषु ' विभयाभावा' इति पाठः ।
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