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१, ९-९, ४१. ] चूलियाए गदियागदियाए सम्मत्तप्पादणकारणाणि
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देविद्धिदंसणेण चत्तारि कारणाणि किण्ण वृत्ताणि ? तत्थ महिद्धिसंजुत्तुवरिमदेवाणमागमाभावा । ण तत्थट्ठिददेवाणं महिद्धिदंसणं पढमसम्मत्तप्पत्तीए णिमित्तं भूयोदंसणेण तत्थ विम्याभावा, सुक्कलेस्साए महिद्धिदंसणेण संकिलेसाभावादो वा सोऊण जं जाइसरणं, देविद्धिं दडूण जं च जाइस्सरणं, एदाणि दो वि जदि वि पढमसम्मत्तप्पत्तीए णिमित्तं होंति, तोचितं सम्मत्तं जाइस्सरणणिमित्तमिदि एत्थ ण घेष्यदि, देविद्धिदंसणसुणणपच्छायदजाइस्सरणणिमित्तत्तादो । किंतु सुणण-देविद्धिदंसणणिमित्तमिदि घेत्तव्यं ।
णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिट्टी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेति ? ॥ ४१ ॥
सुगममेदं पुच्छासुतं ।
शंका- यहां पर देवर्धिदर्शन सहित चार कारण क्यों नहीं कहे ?
समाधान - आनतादि चार कल्पों में महर्धिसे संयुक्त ऊपरके देवोंका आगमन नहीं होता, इसलिये वहां महर्द्धिदर्शनरूप प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण नहीं पाया जाता । और उन्हीं कल्पों में स्थित देवोंकी महर्द्धिका दर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका निमित्त हो नहीं सकता, क्योंकि उसी ऋद्धिको वार वार देखनेसे विस्मय नहीं होता । अथवा, उक्त कल्पों में शुक्ललेश्या के सद्भावके कारण महर्द्धिके दर्शन से कोई संक्लेशभाव उत्पन्न नहीं होते ।
धर्मोपदेश सुनकर जो जातिस्मरण होता है और देवर्द्धिको देखकर जो जातिस्मरण होता है, ये दोनों ही जातिस्मरण यद्यपि प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके निमित्त होते हैं, तथापि उनसे उत्पन्न सम्यक्त्व यहां जातिस्मरणनिमित्तक नहीं माना गया है, क्योंकि यहां देवर्द्धिके दर्शन व धर्मोपदेशके श्रवणके पश्चात् ही उत्पन्न हुए जातिस्मरणका निमित्त प्राप्त हुआ है। अतएव यहां धर्मोपदेशश्रवण और देवर्द्धिदर्शनको ही निमित्त मानना चाहिये ।
Satara विमानवासी देवोंमें मिध्यादृष्टि देव कितने कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं ? ॥ ४१ ॥
यह पृच्छासूत्र सुगम है ।
वास्यादयः असहस्रारकल्पाच्चतुर्भिः कारणैः प्रथमसम्यक्त्वं लभन्ते केचिज्जातिस्मरणेन, इतरे धर्मश्रवणेन अपरे जिनमहिमावेक्षणेनान्ये देवर्द्धिनिरीक्षणेन । आनत प्राणतारणाच्युतेषु तैरेव देवद्विविरहितैः । नवसु ग्रैवेयकेषु द्वाभ्यां कारणाभ्यां - जातिस्मरणाद्धर्मश्रवणाच्च । उपरि देवा नियमेन सम्यग्दृष्टयः । तत्त्वार्थराजवार्तिक २, ३.
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