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१, ९-९, ३७.] चूलियाए गदियागदियाए सम्मत्तुप्पादणकारणाणि [४३३ सग्गोयरण-जम्माहिसेय-परिणक्खमणजिणमहिमाओ जिणबिंबेण विणा कीरमाणीओ दिस्संति त्ति जिणबिंबदंसणस्स अविणाभावो णत्थि त्ति णासंकणिज्जं, तत्थ वि भाविजिणबिंबस्स दंसणुवलंभा । अधवा एदासु महिमासु उप्पज्जमाणपढमसम्मत्तं ण जिणबिंबदसणणिमित्तं, किंतु जिणगुणसवणणिमित्तमिदि ।
देविद्धिदंसणं जाइस्सरणम्मि किण्ण पविसदि ? ण पविसदि, अप्पणो अणिमादिरिद्धीओ' दट्ठण एदाओ रिद्धीओ' जिणपण्णत्तधम्माणुट्ठाणादो जादाओ ति पढमसम्मत्तपडिवज्जणं जाइस्सरणणिमित्तं । सोहम्मिदादिदेवाणं महिड्डीओ दट्टण एदाओ सम्मइंसणसंजुत्तसंजमफलेण जादाओ, अहं पुण सम्मत्तविरहिददव्वसंजमफलेण वाहणादिणीचदेवेसु उप्पण्णो त्ति णादूण पढमसम्मत्तग्गहणं देविद्धिदंसणणिबंधणं । तेण ण दोण्हमेयत्तमिदि । किं च जाइस्सरणमुप्पण्ण पढमसमयप्पहुडि अंतोमुहुत्तकालभंतरे चेव होदि ।
शंका-स्वर्गावतरण, जन्माभिषेक और परिनिष्क्रमणरूप जिनमहिमायें जिनबिम्बके विना की गयी देखी जाती हैं, इसलिये जिनमहिमादर्शनमें जिनबिम्बदर्शनका अविनाभावीपना नहीं है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करना चाहिये, क्योंकि स्वर्गावतरण, जन्माभिषेक और परिनिष्क्रमणरूप जिनमहिमाओंमें भी भावी जिनबिम्बका दर्शन पाया जाता है। अथवा, इन महिमाओंमें उत्पन्न होनेवाला प्रथम सम्यक्त्व जिनबिम्बदर्शननिमित्तक नहीं है, किन्तु जिनगुणश्रवण-निमित्तक है ।
शंका- देवर्धिदर्शनका जातिस्मरणमें समावेश क्यों नहीं होता ?
समाधान नहीं होता, क्योंकि अपनी अणिमादिक ऋद्धियोंको देखकर जब यह विचार उत्पन्न होता है कि ये ऋद्धियां जिन भगवान् द्वारा उपदिष्ट धर्मके अनुष्टानसे उत्पन्न हुई हैं, तब प्रथम सम्यक्त्वकी प्राप्ति जातिस्मरणनिमित्तक होती है। किन्तु जब सौधर्मेन्द्रादिक देवोंकी महा ऋद्धियोंको देखकर यह ज्ञान उत्पन्न होता है कि ये ऋद्धियां सम्यग्दर्शनसे संयुक्त संयमके फलसे प्राप्त हुई हैं, किन्तु मैं सम्यक्त्वसे रहित द्रव्यसंयमके फलसे वाहनादिक नीच देवोंमें उत्पन्न हुआ हूं, तब प्रथम सम्यक्त्वका ग्रहण देवर्धिदर्शननिमित्तक होता है। इससे जातिस्मरण और देवधिदर्शन, ये प्रथम सम्यक्त्वोत्पत्तिके दोनों कारण एक नहीं हो सकते । तथा जातिस्मरण, उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लगाकर अन्तर्मुहूर्तकालके भीतर ही होता है । किन्तु देवर्धिदर्शन, उत्पन्न
१ प्रतिषु · हिदीओ' इति पाठः ।
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