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________________ १, ९–९, २२. ] चूलियाए गदियागदियाए सम्मत्तप्पादणकारणाणि [ ४२७ समुद्देसु कदो, तेण तत्थ पढमसम्मत्तस्स उप्पत्ती ण जुज्जदि ति ? ण एस दोसो, पुव्ववइरियदेवेहि खित्तपंचिंदियतिरिक्खाणं तत्थ संभवादो । तिरिक्खा मिच्छाहट्टी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तं उप्पादेति ? ॥ २१ ॥ पुव्विल्लत्तेहि पंचिदियतिरिक्खेसु पढमसम्मत्तस्स उप्पत्तीए णिच्छिदाए उपपत्तिकारणाणं संखापुच्छा अणेण कदा | तीहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेंति - केई जाइस्सरा, केई सोऊण, केई जिणविंवंद ॥ २२ ॥ कथं जिणबिंवदंसणं पढमसम्मत्तप्पत्तीए कारणं ? जिणबिंबदंसणेण णिधत्त वहां जीवोंका प्रतिषेध किया गया है, इसलिये उन समुद्रोंमें प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति मानना उपयुक्त नही है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, पूर्वभवके वैरी देवोंके द्वारा उन समुद्रों में डाले गये पंचेन्द्रिय तिर्यचौकी संभावना है । तिर्यच मिध्यादृष्टि जीव कितने कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते है ? ॥ २१ ॥ पूर्वोक्त सूत्रद्वारा पंचेन्द्रिय तिर्यचों में प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके निश्चित हो जानेपर उसके उत्पत्तिकारणोंकी संख्यासम्बन्धी पृच्छा इस सूत्रद्वारा की गई है । पूर्वोक्त पंचेन्द्रिय तिर्यच तीन कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैंकितने ही तिच जातिस्मरणसे, कितने ही धर्मोपदेश सुनकर, और कितने ही जिनबिम्बों के दर्शन करके ॥ २२ ॥ शंका - जिनविस्वका दर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण किस प्रकार होता है ? समाधान - जिनविस्वके दर्शन से निधत्त और निकाचित रूप भी मिथ्यात्वादि 1 केर पडिबोहणेण य केइ सहावेण तासु भूमीसुं । दट्ठूणं सुदुक्खं केइ तिरिक्खा बहुपयारं ॥ जाइभरणेण केई के जिणिंदस्स महिमदंसणदो । जिणबिंबदंसणेण य पटमुत्रसम वेदगं च गेण्हति ॥ ति. प. ५, ३०८-३०९० तिरवां केषाश्विज्जातिस्मरणं केषाविद्धर्मभवणं केषाश्विज्जिनबिम्बदर्शनम् । स. सि. १, ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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