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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९–९, १८.
एत्थ वि अच्चंताभावो चेव, पढमसम्मत्तप्पत्तीए पडिसेहादो । गन्भोवक्कंति सु उप्पादेंता पज्जत्तएसु उप्पादेति, णो अपज्ज
तसु ॥ १८ ॥
एत्थ वितं चैव कारणं । को अच्चंताभावो ? करणपरिणामाभावो । सेस सुगमं । पज्जत्तसु उप्पादेंता दिवसपुधत्त पहुडि जावमुवरिमुप्पादेंति, दो ॥ १९ ॥
दिवसपुधत्तमिदि वृत्ते सत्त दिवसा एत्थ ण घेष्पंति । एसो पुधत्तसो वहपुल्लियवायओ त्ति बहुएस दिवसपुधत्तेसु गदेसु पढमसम्मत्तमुप्पादेति त्ति वत्तव्वं । एवं जाव सव्वदीव - समुद्देसु ॥ २० ॥
णत्थि मच्छा वा मगरा वा त्ति जेण तसजीवपडिसेहो भोगभूमिपडिभागिएसु
यहां अर्थात् सम्मूच्छिम जीवोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका प्रतिषेध होनेसे अत्यन्ताभाव ही है ।
गर्भोपक्रान्तिक तिर्यचों में भी प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाले जीव पर्याप्तकों में ही उत्पन्न करते हैं, अपर्याप्तकों में नही ॥ १८ ॥
यहां अर्थात् अपर्याप्तकों में भी पूर्वोक्त प्रतिषेधरूप कारण होनेसे प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका अत्यन्ताभाव है ।
शंका- - अत्यन्ताभाव क्या है ?
समाधान-करणपरिणामोंका अभाव ही प्रकृतमें अत्यन्ताभाव कहा गया है । शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
पर्याप्तक तिर्यंचों में भी प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाले जीव दिवस पृथक्त्वसे लगाकर उपरिम कालमें उत्पन्न करते हैं, नीचे के काल में नहीं ॥ १९ ॥
दिवस पृथक्त्व कहने से यहां केवल सात-आठ दिनका ही ग्रहण नहीं करना चाहिये। क्योंकि यह पृथक्त्व शब्द वैपुल्यवाचक है, अतः बहुतसे दिवसपृथक्त्व व्यतीत हो जानेपर पूर्वोक्त जीव प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, ऐसा कथन करना चाहिये ।
इस प्रकार सब द्वीप समुद्रोंमें तिर्यंच प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं ॥ २० ॥ शंका- चूंकि 'भोगभूमिके प्रतिभागी समुद्रों में मत्स्य या मगर नही हैं ' ऐसा
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