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१, ९-९, १७.] चूलियाए गदियागदियाए सम्मत्तुष्पादणकारणाणि [ ४२५
उप्पादेंता कम्हि उप्पादेंति ? ॥१४॥
किमेइंदिएसु किं वा बादरेइंदिएसु किं सुहुमेइंदिएसु किं वि-ति-चउ-पंचिंदिएसु त्ति वुत्तं होदि ।
पंचिंदिएसु उप्पादेंति, णो एइंदिय-विगलिंदिएसु ॥ १५॥
कुदो ? एइंदिय-विगलिंदिएसु तिविहकरणपरिणामाभावा । किमर्से तेसिमभावो ? सहावदो ।
पंचिंदिएसु उप्पादेंता सण्णीसु उप्पादेंति, णो असण्णीसु॥१६॥ किमट्ठमसण्णिणो पढमसम्मत्तं णो उप्पादेंति ? ण, अच्चंताभावेण कयणिसेहादो।
सण्णीसु उप्पादेंता गम्भोवक्कंतिएसु उप्पादेंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १७॥
प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाले तिर्यंच किस अवस्थामें उत्पन्न करते हैं ? ॥१४॥
क्या एकेन्द्रियों में, क्या बादरएकेन्द्रियोंमें, क्या सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें, अथवा क्या द्वि, त्रि, चतुर् या पंच इन्द्रियोंमें तिर्यंच जीव सम्यक्त्वकी उत्पत्ति करते हैं, यह इस सूत्रके द्वारा पूछा गया है ।
तिर्यंच जीव पंचेन्द्रियों में ही प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में नही ॥१५॥
क्योंकि, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियोंमें त्रिविध करणयोग्य परिणामोंका अभाव है।
शंका-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में त्रिविध करणके योग्य परिणामोंका अभाव क्यों है ?
समाधान-उक्त जीवोंमें स्वभावसे ही त्रिविध करणयोग्य परिणामोंका अभाव है।
पंचेन्द्रियोंमें भी प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाले तिर्यंच जीव संज्ञी जीवोंमें ही उत्पन्न करते हैं, असंज्ञियोंमें नहीं ॥ १६ ॥
शंका-असंज्ञी तिर्यंच प्रथम सम्यक्त्व क्यों नही उत्पन्न करते?
समाधान नहीं करते, क्योंकि असंही पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका अत्यन्ताभावरूपसे निषेध किया गया है।
संज्ञी तियचोंमें भी प्रथम सम्यक्त्व उत्पन्न करनेवाले जीव ग पक्रान्तिक जीवोंमें ही उत्पन्न करते हैं, सम्मूच्छिमोंमें नहीं ॥१७॥
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