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१, ९-९, १०.] चूलियाए गदियागदियाए सम्मत्तुप्पादणकारणाणि [४२३ पुष्वभवसंबंधीणं धम्मपदुप्पायणे वावदाणं सयलबाधाविरहियाणं तत्थ गमणदसणादो।
वेयणाणुहवणं सम्मत्तुप्पत्तीए कारणं ण होदि, सव्वणेरइयाणं साहारणत्तादो । जइ होइ, तो सब्वे णेरइया सम्माइद्विणो होति । ण चेवं, अणुवलंभा? परिहारो वुच्चदेण वेयणासामण्णं सम्मत्तुप्पत्तीए कारणं। किंतु जेसिमेसा वेयणा एदम्हादो मिच्छत्तादो इमादो असंजमादो (वा) उप्पण्णेत्ति उवजोगो जादो, तेसिं चेत्र वेयणा सम्मत्तुप्पत्तीए कारणं, णावरजीवाणं वेयणा, तत्थ एवंविह उवजोगाभावा ।
एवं तिसु उवरिमासु पुढवीसु णेरड्या ॥ ९ ॥ सुगममेदं।
चदुसु होडमासु पुढवीसु णेरड्या मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पा-ति ॥ १० ॥
करानेमें प्रवृत्त और समस्त बाधाओंसे रहित सम्यग्दृष्टि देवोंका नरकोंमें गमन देखा जाता है।
शंका-वेदनाका अनुभवन सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण नही हो सकता, क्योंकि वह अनुभवन तो सब नारकियोंके साधारण होता है। यदि वह अनुभवन सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण हो तो सब नारकी जीव सम्यग्दृष्टि होंगे। किन्तु ऐसा है नही, क्योंकि वैसा पाया नहीं जाता?
समाधान-पूर्वोक्त शंकाका परिहार कहते हैं । वेदना-सामान्य सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण नही है। किन्तु जिन जीवोंके ऐसा उपयोग होता है कि अमुक वेदना अमुक मिथ्यात्वके कारण या अमुक असंयमसे उत्पन्न हुई, उन्हीं जीवोंकी वेदना सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण होती है। अन्य जीवोंकी वेदना नरकोंमें सम्यक्त्वोत्पत्तिका - कारण नही होती, क्योंकि उसमें उक्त प्रकारके उपयोग का अभाव होता है।
इस प्रकार ऊपरकी तीन पृथिवियोंमें नारकी जीव सम्यक्त्वकी उत्पत्ति करते हैं ॥९॥
यह सूत्र सुगम है।
नीचेकी चार पृथिवियोंमें नारकी मिथ्यादृष्टि जीव कितने कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन करते हैं ? ॥१०॥
१ प्रतिषु — दव्वपदुप्पायणे' इति पाठः ।
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