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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १६. सव्वाणि अपुवफद्दयाणि ।
__ एत्तो अंतोमुहुत्तं किट्टीओ करेदि । अपुव्वफयाणमादिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदाणमसंखेज्जदिभागमोकड्डदि । जीवपदेसाणं असंखेज्जदिभागमोकड्डदि । एत्थ अंतोमुहत्तं किट्टीओ करेदि असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए । जीवपदेसाणमसंखेज्जगुणाए सेडीए ओकडदि । किट्टीगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। किट्टीओ सेडीए असंखेज्जदिभागो, अपुन्बफद्दयाणं पि असंखेज्जदिभागो। किट्टीकरणे णिट्ठिदे तदो से काले पुवफद्दयाणि अपुव्वफद्दयाणि च णासेदि । अंतोमुहुत्तं किट्टीगदजोगो होदि । सुहुमकिरियं अप्पडिवादि ज्झाणं ज्झायीद । किट्टीणं च चरिमसमए असंखजे भागे णासदि।
भाग, और पूर्वस्पर्द्धकोंके भी असंख्यातवें भागमात्र होते हैं।
अपूर्वस्पर्द्धकोंको करनेके पश्चात् अन्तर्मुहूर्त काल तक कृष्टियोंको करता है। अपूर्वस्पर्द्धकोंकी प्रथम वर्गणासम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदोंके असंख्यातवें भागका अपकर्षण करता है। कृष्टियोंको करनेवाला जीवप्रदेशोंके असंख्यातवें भागका अपकर्षण करता है। यहां अन्तर्मुहूर्त काल तक असंख्यातगुणी हीन श्रेणीके क्रमसे कृष्टियोंको करता है। किन्तु जीवप्रदेशोंका अपकर्षण असंख्यातगुणित श्रेणीसे करता है। कृष्टिगुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। ये कृष्टियां श्रेणीके असंख्यातवें भाग और अपूर्वस्पर्द्धकोंके भी असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं । कृष्टिकरणके समाप्त होनेपर उसके अनन्तर समयमें पूर्वस्पर्द्धको और अपूर्वस्पर्द्धकोको नष्ट करता है। अन्तर्मुहूर्त काल तक कृष्टिगत योगवाला होता है। उस समय केवली भगवान् सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती शुक्लध्यानको ध्याते हैं। सयोगिगुणस्थानके अन्तिम समयमें कृष्टियोंके असंख्यात बहुभागोंको नष्ट करते हैं। योगका निरोध
१ सेढिपदस्स असंखं भागं पुवाण फड्ट्याणं वा। सब्वे होंति अपुव्वा हु फड्डया जोगपडिबद्धा । लब्धि. ६३४. कियन्ति पुनः स्पर्द्धकानि करोतीति चेत्, उच्यते- श्रेणिवर्गमूलस्यासंख्ययभागमात्राणि, पूर्वस्पर्द्धकानामसंख्येयभागमात्राणीति यावत् । पंचसंग्रह १, पृ. ३१.
२ एत्तो करेदि किटिं मुहुत्त अंतोत्ति ते अपुत्राणं । हेट्ठादु फयाणं सेटिस्स असंखभागमिदं ॥ अपुवादिवग्गणाणं जीवपदेसाविभागपिंडादो । होति असंखं भागं किट्टीपढमम्हि ताण दुगं ॥ लब्धि. ६३५-६३६.
३ उक्कट्टदि पडिसमयं जीवपदेसे असंखगुणियकमे। तग्गुणहीणकमेण य करेदि किहि तु पडिसमए । लब्धि. ६३७.
४ सेढिपदस्स असंखं भागमपुव्वाण फड़याणं व । सव्वाओ किट्टीओ पलस्स असंखभागयुणिदकमा ॥ लब्धि. ६३८.
५ किट्टीकरणे चरमे से काले उभयफड़ये सब्वे । णासेइ मुहुत्तं तु किट्टीगदवेदगो जोगी। लब्धि. ६४०.
६ किट्टिगजोगी झाणं झायदि तर्दियं खु सुहुमकिरियं तु । चरिमे असंखभागे किट्टीणं णासदि सजोगी ॥ लन्धि. ६४३.
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