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________________ ४१.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, १६. खवणद्धा । सेसेसु पदेसु णत्थि णाणत्तं । ____एत्तो णqसयवेदेण उवट्ठिदस्स खवगस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो-जाव अंतरं ण करेदि ताव णत्थि णाणतं । अंतरं करेमाणो णqसयवेदस्स पढमट्ठिदि ठवेदि । जम्महं-( ती इत्थीवेदेण उवविदस्स इत्थीवेदस्स पढमहिदी, तम्महंती णqसयवेदेण उवविदस्स णqसयवेदस्स पढमहिदी । तदो अंतरदुसमयकदे णqसयवेदं खवेदुमाढ तो। जद्देही पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स ण_सयवेदस्स खवणद्धा तद्देही णqसयवेदेण उवट्ठिदस्स णqसयवेदस्स खवणद्धा गदा ण ताव) णqसयवेदो खीयदि । तदो से काले इत्थिवेदं खवेदुमाढत्तो', णqसयवेदं हि खवेदि । अम्हि पुरिसवेदेण उवढिदस्स इत्थिवेदो खीणो तम्हि चेव णसयवेदेण उवविदस्स इत्थिवेदो णqसयवेदो च दो वि सह खीयंति । ___ तदो अवगदवेदो सत्त कम्मंसे खवेदि । सत्तण्हं हि कम्माणं तुल्ला खवणद्धा । सेसेसु पदेसु जहा पुरिसवेदेण उवविदस्स उत्तं तधा वत्तव्यं । जाधे चरिमसमयसुहुमसांपराइयो जादो ताधे णामा-गोदाणं हिदिबंधो अट्ठ मुहुत्ता। वेदणीयस्स ट्ठिदिबंधो बारस पदोंमें कोई विशेषता नहीं है। ___ यहांसे आगे नपुंसकवेदसे उपस्थित क्षपककी विशेषताको कहते हैं- जब तक अन्तरको नहीं करता है तब तक कोई विशेषता नहीं है । अन्तरको करता हुआ नपुंसकवेदकी प्रथमस्थितिको स्थापित करता है। (स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपकके जितनी बड़ी स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति है, उतनी ही नपुंसकवेदसे उपस्थित क्षपकके नपुंसकवेदकी प्रथमस्थिति है। पश्चात् अन्तर करनेके दूसरे समय नपुंसकवेदका क्षय करना प्रारम्भ करता है। पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपकके जितना नपुंसकवेदका क्षपणाकाल है उतना नपुंसकवेदसे उपस्थित क्षपकके नपुंसकवेदका क्षपणाकाल चीत जाता है, किन्तु तब तक नपुंसकवेद क्षीण नहीं होता।) पश्चात् अनन्तर समयमें स्त्रीवेदका क्षय करना प्रारम्भ करके नपुंसकवेदका निश्चयसे क्षय करता है । पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपकका जिस समयम स्त्रीवेद क्षीण होता है उसी समयमे ही नपुंसकवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेद और नपुंसकवेद दोनों ही एक साथ क्षयको प्राप्त होते हैं । तदनन्तर अपगतवेद होकर सात नोकषायोका क्षय करता है। सातों ही नोकपायोंका क्षपणाकाल तुल्य है। शेष पदोंमें जैसी विधि पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपककी कही गई है, वैसी यहां भी कहना चाहिये। जिस समय अन्तिमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक होता है, उस समयमें नाम व गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध आठ मुहूर्त, वेदनीयका स्थितिबन्ध १ प्रतिषु ‘खवेदिमादत्तो' इति पाठः । २ थीपढमहिदिमेत्ता सहस्स वि अंतरादु संटेक्क। तस्सद्धाति तदुवरि संढा इच्छिच खवदि थीचरिमे ॥ अवगयवेदो संतो सत्त कसाये खवेदि कोहुदये । पुरिसुदये चडणविही सेसुदयाणं तु हेटुवरि ॥ लब्धि. ६०७-६०८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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