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________________ १, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खवगणाणत्तपरूवणं [ ४०९ उवट्ठिदो तम्हि कोधं खवेदि । कोधेण उवट्ठिदो जम्हि किट्टीओ करेदि, लोभेण उवह्रिदो तम्हि माणं खवेदि । कोषेण उवढिदो जम्हि कोधं खवेदि, लोभेण उवढिदो तम्हि मायं खवेदि । कोण उवविदो जम्हि माणं खवेदि, लोभेण उवढिदो तम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि । कोधेण उवढिदो जम्हि मायं खवेदि लोभेण उवविदो तम्हि किट्टीओ करेदि । कोषेण उवविदस्स जम्हि लोभ खवेदि, तम्हि चेव लोभेण उवविदो लोभं खवेदि । एसा सव्वा सण्णियासपरूवणा पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स। इत्थिवेदेण उवद्विदस्स खवयस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो । तं जहा- जाव अंतरं ण करेदि ताव णत्थि णाणत्तं । अंतरं करेमाणो इत्थिवेदस्स पढमहिदि हवेदि । जद्देही पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स इथिवेदस्स खवणद्धा, तदेही इत्थिवेदेण उवट्ठिदस्स इथिवेदस्स पढमद्विदी । णqसयवेदं खवेमाणस्स णत्थि णाणत्तं । णqसयवेदे खीणे इत्थिवेदं खवेदि । जम्महंती पुरिसवेदेण उवट्टिदस्स इत्थिवेदखवणद्धा, तम्महंती इथिवेदेण उवढिदस्स इत्थिवेदस्स खवणद्धा । तदो अवगदवेदो सत्त कम्मंसे खवेदि । सत्तण्हं हि कम्माणं तुल्ला करता है, उस समयमें लोभसे उपस्थित क्षपक क्रोधका क्षय करता है। क्रोधसे उपस्थित क्षपक जिस कालमें कृष्टियों को करता है, लोभसे उपस्थित क्षपक उस कालमें मानका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित जिस कालमें क्रोधका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित उस कालमें मायाका क्षय करता है। क्रोधसे उपस्थित जिस कालमें मानका क्षय है, लोभसे उपस्थित उस कालमें अश्वकर्णकरणको करता है। क्रोधसे उपस्थित जिस कालमें मायाका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित उस कालमें कृष्टियोंको करता है। क्रोधसे उपस्थित जिस कालमें लोभका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित भी उस कालमें लोभका क्षय करता है। यह सब सादृश्यप्ररूपणा पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपककी है। स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपककी विशेषता को कहते हैं । वह इस प्रकार है- जब तक अन्तर नहीं करता तब तक कोई भेद नहीं है। अन्तरको करता हुआ स्त्रीवेदकी प्रथमस्थितिको स्थापित करता है। जितनामात्र पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदका क्षपणाकाल है, उतनीमात्र स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदकी प्रथमस्थिति है । नपुंसकवेदका क्षय करनेवालेके कोई विशेषता नहीं है। नपुंसकवेदके क्षीण होनेपर स्त्रीवेदका क्षय करता है। जितने प्रमाणरूप पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदका क्षपणाकाल है उतने प्रमाणरूप स्त्रीवेदसे उपस्थित क्षपकके स्त्रीवेदका क्षपणाकाल है। स्त्रीवेदकी प्रथमस्थितिके क्षीण होनेपर अपगतवेद होकर सात (हास्यादिक छह और पुरुषवेद) कर्मोका क्षय करता है । सातों ही कर्मोका क्षपणाकाल तुल्य है । शेष १पुरिसोदएण चडिदस्सित्थीखवणद्ध उत्ति पढमठिदी । इथिस्स सत्त कम्मं अवगदवेदो समं विणासेदि ॥ लब्धि. ६०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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