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________________ १, ९-८ १६. ] चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए किट्टीवेदणं [ ४०१ किट्टीदो माणस पढमकिट्टीए संकमदि पदेसरगं थोवं । कोधस्स तदियकिट्टीदो माणस्स पढमाए संगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । माणस्स पढमादो संग्रह किडीदो मायाए पढमसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । माणस्स विदियादो संगहकिट्टीदो मायाए पढमसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । माणस्स तदियादो संगहीदो मायाए पढमसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । मायाए पढमसंगहीदो लोभस्स पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । मायाए विदियसंग किट्टीदो लोभस्स पढमाए संगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । मायाए ( तदियादो संगह किट्टीदो ) लोभस्स पढमाए संगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । लोभस्स पढमकिट्टीदो लोभस्स चेव विदियसंगह किट्टीए संकमदि पदेसगं विसेसाहियं । लोभस्स पढमसंगह किट्टीदो तस्स चेव' तदियसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । कोस्स पढमसंगह किट्टीदो माणस्स पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेजगुणं । कोधस्स चैव पढमसंगह किट्टीदो कोधस्स तदियसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसा वाले क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें स्तोक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है । क्रोधकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशात्र विशेष अधिक संक्रमण करता है। मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशाम विशेष अधिक संक्रमण करता है। मानकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि प्रदेशा विशेष अधिक संक्रमण करता है। मानकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशाय विशेष अधिक संक्रमण करता है । मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि से लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशाय विशेष अधिक संक्रमण करता है । मायाकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशात्र विशेष अधिक संक्रमण करता है । ( मायाकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे ) लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें प्रदेशाम विशेष अधिक संक्रमण करता है। लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभकी ही द्वितीय संग्रहकृष्टिमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक संक्रमण करता है । लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे उसकी ही तृतीय संग्रहकृष्टि प्रदेशाय विशेष अधिक संक्रमण करता है । क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संख्यातगुणा प्रदेशाग्र संक्रमण करता है । कोधकी ही प्रथम संग्रह - कृष्टिसे क्रोधकी तृतीय संग्रहकृष्टिमें प्रदेशात्र विशेष अधिक संक्रमण करता है । क्रोधकी १ आ - प्रतौ ' तस्सेव ' इति पाठः । २ वेद पढमे कोहस्स य विदियदो दु तदियादो । माणस्स य पढमगदो माणतियादो दु माणपटमगदो ॥ मायतियादो लोभस्सादिगदो लोभपढमदो विदियं । तदियं च गदा दव्वा दसपदमद्धियकमा होंति ॥ लब्धि. ५७५-५७६. ३ अ प्रतौ ' विसेसाहियं संखेज्जगुणं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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