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४०.] . छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-८, १६. सुहुमसांपराइयकिट्टीकारयस्स किट्टीसु दिस्समाणपदेसग्गस्स सेडीपरूवणं वत्तइस्सामो। तं जहा- जहणियाए सुहुमसांपराइयकिट्टीए पदेसग्गं बहुगं । तत्तो अणतभागहीणं ताव जाव चरिमसुहुमसांपराइयकिट्टि ति । तदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए पदेसग्गमसंखेजगुणं । एसा सेडीपरूवणा जाव चरिमसमयबादरसांपराइओ त्ति।
. सुहुमसांपराइयकिट्टीसु कीरमाणेसु लोभस्स चरिमादो बादरसांपराइयकिट्टीदो सुहुमसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं थोवं । लोभस्स विदियकिट्टीदो चरिमवादरेसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । लोभस्स विदियकिट्टीदो सुहुमसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेजगुणं । पढमसमयकिट्टीवेदगस्स' कोधस्स विदिय
सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकारककी कृष्टियों में दृश्यमान प्रदेशाग्रकी श्रेणिप्ररूपणाको कहते हैं । वह इस प्रकार है- जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि में दृश्यमान प्रदेशाग्र बहुत है। इसके आगे अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि तक वह दृश्यमान प्रदेशाग्र अनन्तवें भागसे हीन है । इसके आगे जघन्य बादरसाम्परायिक कृष्टि में प्रदेशाग्न असंख्यातगुणा है। यह श्रेणिप्ररूपणा (सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकारकके प्रथम समयसे लेकर) अन्तिम समय बादरसाम्परायिक तक है।।
___ सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको करते समय लोभकी अन्तिम बादरसाम्परायिक कृष्टिसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें स्तोक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है । लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे अन्तिम बादरसाम्परायिक संग्रह कृष्टिमें संख्यातगुणा प्रदेशाग्र संक्रमण करता है (क्योकि लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टिके प्रदेशोसे द्वितीय संग्रहकृष्टिके प्रदेश संख्यातगुणे हैं । ) लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें संख्यातगुणा प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। प्रथम समय कृष्टिवेदक अर्थात् कृष्टिकरणकालके समाप्त होनेपर अनन्तरकालमें क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिका अपकर्षण कर उसका वेदन करने
१ पदमादिसु दिस्सकमं सुहुमेसु अणंतभागहीणकमं । बादरकिट्टिपदेसो असंखगुणिदं तदो हीणं ॥ लब्धि. ५७३.
२ प्रतिषु ' चरिमसमयबादर' इति पाठः । लोभस्स विदियकिट्टीदो चरिमबादरसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुण । किं कारणं ? लोभतदियसंगहकिट्टीपदेसादो विदियसंगहकिट्टीपदेसग्गस्स संखेज्जगुणत्तादो। जयध. अ. प. १२००.
३ लोहस्स य तदियादो सुहुमगदं विदियदो दु तदियगदं । विदियादो सहुमगदं दव्वं संखेज्जगुणिद. कम ॥ लब्धि . ५७४.
४ किट्टीकरणद्धाए णिदिद्विदाए (णि द्विदाए) से काले कोहपढमसंगहकिट्टिमोकहियण वेदेमाणो पढमसमयकिट्टीवेदगो णाम | नयध. अ. प. १२००,
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