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२९५] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १५. तदो से काले लोभस्स पढमसंगहकिट्टीदो पदेसग्गमोकट्टिदण पढमद्विदि करेदि तेणेव विहिणा संपत्तो। लोभस्स पढमकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमद्विदी तिस्से पढमद्विदीए समयाहियांवलिया सेसा त्ति । ताधे लोभसंजलणहिदिबंधो अंतोमुहुत्तं; ठिदिसंतकम्मं पि अंतोमुहुत्तं । तिण्हं धादिकम्माणं द्विदिबंधो दिवसपुधत्तं । सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो वासपुधत्तं । घादिकम्माणं हिदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि; सेसाणं कम्माणं असंखेज्जाणि वस्साणि ।
तदो से काले लोभस्स विदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकट्टिदूण पढमद्विदि करेदि । ताधे चेव लोभस्स विदियसंगहकिट्टीदो तदियसंगहकिट्टीदो च पदेसग्गमोकट्टिदूण सुहुमसांपराइयकिट्टीओ करेदि । तासिं सुहुमसांपराइयकिट्टीणं कम्हि अवट्ठाणं ? तासिं लोभस्स तदियाए संगहकिट्टीए हेढदो अवट्ठाणं । जारिसी कोधस्स पढमसंगहकिट्टी तारिसी एसा
उसके अनन्तर समयमें लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर प्रथमस्थितिको करता है, और उसी विधिसे अपने कृष्टिवेदककालके अन्तिम समयको प्राप्त होता है । लोभकी प्रथम कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके जो प्रथमस्थिति है उस प्रथमस्थितिमें एक समय अधिक आवलिमात्र शेष रहती है। उस समय संज्वलनलोभका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त और स्थितिसत्व भी अन्तर्मुहूर्तमात्र होता है। तीन घातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध दिवसपृथक्त्व और शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है । घातिया कर्मोंका स्थितिसत्व संख्यात वर्षसहस्र और शेष कौका स्थितिसत्व असंख्यात वर्षप्रमाण होता है।
उसके अनन्तर समयमै लोभकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर प्रथमस्थितिको करता है । उसी समयमें (लोभवेदककालके द्वितीय त्रिभागके प्रथम समयमें) ही लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे और तृतीय संग्रह कृष्टिसे भी प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको करता है।
शंका-उन सक्षमसाम्परायिक कृष्टियोंका अवस्थान कहां है ?
समाधान-उन सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों का अवस्थान लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टिके नीचे है । जैसी क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि है वैसी ही यह सूक्ष्मसाम्परायिक
१ लोहस्स पढमचरिमे लोहस्संतोमुहुत्त बंधदुगे। दिवसपुधत्तं वासा संखसहस्साणि घादितिये ॥ सेसाणं पयडीणं वासपुधत्तं तु होदि ठिदिबंधो । ठिदिसत्तमसंखेज्जा वस्साणि हवंति णियमेण ॥ लब्धि. ५६३-५६४.
२ बादरसांपराइयकिट्टीहिंतो अणंतगुणहाणीए परिणमिय लोभसंजलणाणुभागस्सावट्ठाणं सहुमसांपराइयकिट्टीणं लक्खणमवहारेयव्वं । जयध. अ. प. ११९६. से काले लोहस्सय विदियादो संगहादु पढमठिदी। ताहे महमं किहि करेदि तविदियतदियादी ॥ लब्धि. ५६५.
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