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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, १५. हियावलिया सेसा ति। ताधे संजलणाणं द्विदिबंधो मासो दस च दिवसा देसूणा; संतकम्मं दो वस्साणि अट्ठ च मासा देसूणा ।
से काले माणतदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकट्टिदूण पढमट्ठिदि करेदि तेणेव विहिणा संपत्तो । माणस्स तदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमट्टिदी तिस्से आवलिया समयाहियमेत्ता सेसा ति। ताधे माणस्स चरिमसमयवेदगो । ताधे तिण्हं संजलणाणं द्विदिबंधो मासो पडिवुण्णो; संतकम्मं वे वस्साणि पडिवुण्णाणि ।
तदो से काले मायाए पढमकिट्टीए पदेसग्गमोकट्टिदूण पढमट्ठिदिं करेदि तेणेव विहिणा संपत्तो । मायापढमकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमट्ठिदी तिस्से समयाहियावलिया सेसा त्ति । ताधे ट्ठिदिबंधो दोण्हं संजलणाणं पणुवीसदिवसा देसूणा; द्विदिसंतकम्म वस्सं अट्ठ च मासा देसूणा ।
उसमें एक समय अधिक आवलिमात्र शेष रहती है। तब संज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध एक मास और कुछ कम दश दिन तथा सत्व दो वर्ष और कुछ कम आठ मासप्रमाण होता है।
तदनन्तर समयमें मानकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर प्रथमस्थितिको करता है और उसी विधिसे अपने कृष्टिवेदककालके अन्तिम समयको प्राप्त होता है। मानकी तृतीय कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके जो प्रथमस्थिति है, उसमें एक समय अधिक आवलिमात्र शेष रहती है। उस समयमें मानका अन्तिम समय वेदक होता है। तब तीन संज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध परिपूर्ण एक मास और सत्व परिपूर्ण दो वर्षप्रमाण होता है।
उसके अनन्तर समयमें मायाकी प्रथम कृष्टिसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर प्रथमस्थितिको करता है और उसी विधिसे अपने कृष्टिवेदककालके अन्तिम समयको प्राप्त होता है । मायाकी प्रथम कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके जो प्रथमस्थिति है उसमें एक समय अधिक आवलिमात्र. शेष रहती है। तब शेष दो संज्वलनकषायोंका स्थितिबन्ध कुछ कम पञ्चीस दिवस तथा स्थितिसत्व एक वर्ष और कुछ कम आठ मासप्रमाण होता है।
१माणपढमसंगहकिट्टिमहिकिच्च पुव्वं परूविदो जो विही तेणेव विहिणा अणूणाहिएण संजुत्तो एसो सगकिट्टीवेदगद्धाए चरिमसमयसंपत्तो। ताधे अप्पणो पटमट्ठिदिसमयाहियावलियमेत्ती सेसा, सेसपढमहिदीए सगवेदगकालब्भतरे णिज्जिण्णत्तादो ति । एसो एत्थ सुत्तत्थविणिण्णओ। जयध. अ. प. ११९४-९५.
२ विदियस्स माणचरिमे चत्तं वत्तीस दिवसमासाणि | अंतोमुहुत्तहीणा बंधो सत्तो तिसंजलणगाणं ॥लब्धि.५५७.
३ तदियस्स माणचरिमे तीसं चउवीस दिवसमासाणि । तिण्हं संजलणाणं ठिदिबंधो तह य सत्तो य ॥ लन्धि. ५५८.
४ पदमगमायाचरिमे पणवीसं वीस दिवसमासाणि । अंतोमुहुचहीणाबंधो सत्तो दुसंजलणगाणं ॥ लब्धि. ५५९.
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