SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १,९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए किट्टीवेदणं [ ३९१ वेदगद्धा तिस्से वेदगद्धाए' तिभागमेत्ता पढमद्विदी। तदो माणस्स पढमकिट्टि वेदयमाणो तिस्से पढमसंगहकिट्टीए अंतरकिट्टीणमसंखेज्जे भागे वेदयदि । तदो उदिण्णाहिंतो विसेसहीणाओ बंधदि । सेसाणं कसायाणं पढमकिट्टीओ चेव बंधदि । जेणेव विहिणा कोहस्स पढमकिट्टी वेदिदा तेणेव विहिणा माणस्स पढमकिट्टि वेदयदि । किट्टीविणासणे बज्झमाणएण संकामिज्जमाणएण च पदेसग्गेण अपुव्वाणं किट्टीणं करणे किट्ठीणं बंधोदयणिव्वग्गणकरणेसु णत्थि णाणतं अण्णेसु च अभणिदेसु । एदेण कमेण माणपढमकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमद्विदी तिस्से पढमद्विदीए जाधे समयाहिआवलिया सेसा ताधे तिण्हं संजलणाणं द्विदिबंधो मासो वीसं च दिवसा अंतोमुहुत्तूणा; संतकम्मं तिण्णि वस्साणि चत्तारि मासा च अंतोमुहुत्तूणा ।। से काले माणस्स विदियसंगहकिट्टीदो पदेसग्गमोकट्टिद्ण पढमट्ठिदिं करेदि तेणेव विधिणा संपत्तो । माणस्स विदियकिहि वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से समया है। यहां जो सब मानवेदककाल है उस मानवेदककालके त्रिभागमात्र प्रथमस्थिति है । पश्चात् मानकी प्रथम कृष्टिका वेदन करनेवाला उस प्रथम संग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियोंके असंख्यात भागोंका वेदन करता है। उन उदीर्ण हुई कृष्टियोंसे विशेष हीन कृष्टियोंको बांधता है। शेष कषायोंकी प्रथम कृष्टियोंको ही बांधता है। जिस विधिसे क्रोधकी प्रथम कष्टिका वेदन किया है उसी विधिसे मानकी प्रथम कष्टिका वेदन करता है । कृष्टिविनाशमें, बध्यमान व संक्रम्यमाण प्रदेशाग्रसे अपूर्व कृष्टियोंके करनेमें तथा कृष्टियोंके बंध, उदयसम्बन्धी निर्वर्गणा अर्थात् अनन्तगुणहानिरूप अपसरणभेद, इन करणोंमें कोई विशेषता नहीं है, तथा जो अन्य करण नहीं कहे गये हैं उनके करनेमें भी विशेषता नहीं है। इस क्रमसे मानकी प्रथम कृष्टिको वेदन करनेवालेके जो प्रथमस्थिति है, उस प्रथमस्थितिमें जब एक समय अधिक आवलिमात्र शेष रहती है तब क्रोध विना तीन संज्वलन कषायोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम एक मास बीस दिन तथा स्थितिसत्व तीन वर्ष और अन्तर्मुहूर्त कम चार मासप्रमाण होता है। तदनन्तर समयमें मानकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर प्रथमस्थितिको करता है, व मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिका अधिकार कर जो पूर्वमें विधि प्ररूपित की गई है उसी विधिसे संयुक्त होता हुआ अपने कृष्टिवेदककालके अन्तिम समयको प्राप्त होता है । उस समय मानकी द्वितीय कृष्टिको वेदन करनेवालेके जो प्रथमस्थिति है १ प्रतिषु 'जा एत्थ सत्रमाणवेदगद्धाए तिभागमेत्ता' इति पाठः।। २ से काले माणस्स य पटमादो संगहादु पटमठिदी। माणोदयअद्धाये तिभागमेत्ता हु पढमठिदी ॥ लन्धि. ५५५. . ३ कोहपढमं व माणो चरिमे अंतोमुहुत्तपरिहीणो। दिणमासपण्णचत्तं बंध सत्तं तिसंजलणगाणं ॥लब्धि.५५६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy