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१, ९-८, १६. ]
चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए किडीवेदणं
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से काले कोधस्स विदियकिट्टीदो पदेसग्गमकट्टिदूण कोधस्स पढमट्ठिर्दि करेदि' । ताधे कोधस्स पढमकिट्टीर्ण संतकम्मं दोआवलियबंधा दुसमऊणा, जमुदयावलियं पवितं च सेसं पढमकिट्टीए । ताधे कोधस्स पढमसमयविदियकिडी वेदगो । जो को पढमक वेदयमाणस्स विधी सो कोधस्स विदियकिट्टैि वेदयमाणस्स विधी काव्वो । तं जहा - उदिष्णाणं किट्टीणं बज्झमाणियाणं किट्टीणं विणासिज्जमाणीणं किट्टीणं अपुव्वाणं णिव्यत्तिज्जमाणियाणं बज्झमाणेण पदेसग्गेण संछुब्भमाणेण च पदेसग्गेण णिव्यत्तिज्जमाणियाणं ।
एत्थ संकममाणस्स पदेसग्गस्स विधिं वत्तहस्सामा । तं जहा- कोधविदियकिट्टीणं पदेसग्गं कोधतदियं च माणपढमं च गच्छदि । कोधस्स तदियादो माणस्स पढमं चैव गच्छदि । माणस्स पढमादो किट्टीदो माणस्स विदियं तदियं च मायाए पढमं च गच्छदि । माणस्स विदियकिट्टीदो माणस्स तदियं च मायाए पढमं च गच्छदि ।
अनन्तर समय में क्रोधकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशात्रका अपकर्षण कर कोधकी प्रथमस्थितिको करता है । उस समय में क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें सत्वस्वरूप जो दो समय कम दो आवलिमात्र नवक बंधप्रदेशाम है वह, और जो प्रदेशाग्र उदयावलिमें प्रविष्ट है वह भी प्रथम कृष्टिमें शेष रहता है । उस समय क्रोधकी द्वितीय कृष्टिका प्रथम समय वेदक होता है । क्रोधकी प्रथम कृष्टिको वेदन करनेवालेकी जो विधि कही गई है वही विधि क्रोध की द्वितीय कृष्टिको वेदन करनेवालेके भी कहना चाहिये। वह इस प्रकार हैउदीर्ण कृष्टियोंकी, बध्यमान कृष्टियोंकी, नष्ट की जानेवाली कृष्टियोंकी, बध्यमान प्रदेशाग्र से निर्वर्तमान अपूर्व कृष्टियोंकी, और संक्रम्यमाण प्रदेशाग्र से भी निर्वर्तमान कृष्टियों की विधि प्रथम संग्रहृष्टिमें कही हुई विधिके ही समान कहना चाहिये । यहां संक्रम्यमाण प्रदेशाग्रकी विधिको कहते हैं । वह इस प्रकार है क्रोध की द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र क्रोधकी तृतीय और मानकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है । क्रोधकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाय मानकी प्रथम कृष्टिको ही प्राप्त होता है। मानकी प्रथम कृष्टिसे मानकी द्वितीय और तृतीय तथा मायाकी प्रथम कृष्टिको भी प्राप्त होता है | मानकी द्वितीय कृष्टिसे मानकी तृतीय और मायाकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है ।
१ से काले कोहस्स य विदियादो संगहादु पढमठिदी । कोहस्स विदियसंगहाकिट्टिस्स य वेदगो होदि ॥
लब्धि. ५४१.
२ जयधवलायां 'पदमसंगह किट्टीए ' इति पाठः ।
३ प्रतिषु ' दो आवलियखंधा ' इति पाठः ।
४ कोहस्स पढमसंगहकिट्टिस्सावलियपमाण पटमठिदी । दोसमऊणदुआवलिणवकं च वि चेउदे ताहे ॥
लब्धि. ५४२.
५ कोहस्स विदियट्टिी वेदयमाणस्स पटमकिहिं वा । उदओ बंधो णासो अपुव्वकिट्टीण करणं च ॥ लब्धि. ५४४.
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