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________________ १८८1 छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,९-८, १६. डाओ ताओ पढमसमयकिट्टीवेदगस्स कोधस्स पढमसंगहकिट्टीए अबज्झमाणियाणं किट्ठीणमसंखेज्जदिभागों। कोधस्स पढमकिट्टिवेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से पढमद्विदीए समयाहियाए आवलियाए सेसाए एदम्हि समए जो विधी तं विधिं वत्तइस्सामो। तं जहा- ताधे चेव कोधस्स जहण्णट्ठिदिउदीरगो (१) कोधपढमकिट्टीए चरिमसमयवेदगो च' (२)। जा पुव्वपवत्ता संजलणाणुभागसंतकम्मस्स अणुसमयओवट्टणा सा तहा चेव (३)। चदुसंजलणाणं ठिदिबंधो वे मासा चत्तालीसं च दिवसा अंतोमुहुत्तूणा (४)। संजलणाणं द्विदिसंतकम्मं छ वस्साणि अट्ट मासा अंतोमुहुत्तूणा (५)। तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो दस वस्साणि अंतोमुहुत्तूणाणि (६)। घादिकम्माणं ट्ठिदिसंतकम्मं संखेजाणि वस्साणि (७) । सेसाणं कम्माणं द्विदिसंतकम्मं असंखेज्जाणि वस्साणि (८)। क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिकी अवध्यमान कृष्टियोंके भी असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । क्रोधकी प्रथम कृष्टिका वेदन करनेवालेके जो प्रथमस्थिति है, उस प्रथमस्थितिमें एक समय अधिक आवलिके शेष रहनेपर इस समयमें जो विधि है उस विधिको कहते हैं। वह इस प्रकार है- उसी समयमें क्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक (१) और क्रोधकी प्रथम कृष्टिका चरम समय वेदक होता है (२)। प्रति समयमें संज्वलनचतुष्कके अनुभागसत्वका अपकर्षण जो पूर्वसे प्रवृत्त है वह उसी प्रकार रहता है (३)। संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम दो मास और चालीस दिवसप्रमाण होता है (४)। संज्वलनचतुष्कका स्थितिसत्व अन्तर्मुहूर्त कम छह वर्ष और आठ मासप्रमाण होता है (५)। तीन घातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम दश वर्षप्रमाण होता है (६)। घातिया कर्मोंका स्थितिसत्व संख्यात वर्षमात्र होता है (७)। शेष कर्मोंका स्थितिसत्व असंख्यात वर्षमात्र होता है (८)। १पढमसमयकिट्टिवेदगस्स कोहपढमसंगहकिट्टीए हेडिमोवरिमासंखेज्जभागमेत्ता किट्टीओ अबज्झमाणियाओ णाम । पुणो तत्थ उवरिमाबज्झमाणकिट्टीगमसंखेज्जदिभागमेत्तीओ चेव किट्टीओ एदेण सव्वेण वि कालेण विणासिदाओ दवाओ। जयध. अ. प. ११८८. २ कोहस्स य जे पढमे संगहकिट्टिम्हि णट्ठकिट्टीओ। बंधुझियाकाणं तस्स असंखेज्जभागो हु॥ लब्धि. ५३७. ३ कोहादिकिट्टियादिहिदिम्हि समयाहियावलीसेसे। ताहे जहण्णुदीरइ चरिमो पुण वेदगो तस्स ॥ लन्धि. ५३८. ४ ताहे संजलणाणं बंधो अंतोमुहुत्तपरिहीणो। सत्तो वि य सददिवसा अडमासभहियछचरिसा॥ कन्धि. ५३९. ५ भादितियाण बंधो दसवासंतोपहत्तपरिहीणा। सत्तं संखं वस्सा सेसाणं संखऽसंखवस्साणि ॥लब्धि.५४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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