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छक्खडागमे जीवाणं
किट्टी करेदि णियमा ओवतो ठिदी य अणुभागे । बढेतो किट्टीए अकारगो होदि बोद्धव्बो' ॥ ३२ ॥ गुणसेडि अनंतगुणा लोभादीकोधपच्छिमपदादो । कम्मरस य अणुभागे किट्टीए लक्खणं एदं ॥ ३३ ॥
किट्टीओ करें तो पुच्चफद्दयाणि अपुव्वफद्दयाणि च वेदयदि, किट्टीओ ण वेदयदि । पढमट्ठिदी आवलियाए सेसाए किट्टीकरणद्धा गिट्ठायदि । से काले किट्टीओ पवेदेदि । ता संजणाणं द्विदिबंधो चत्तारि मासा । ट्ठिदिसंतकम्मम वस्त्राणि । तिन्हं घादिकम्माणं दिट्टिबंधो ट्ठिदिसंतकम्मं च संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । णामा - गोद-वेदणीयाणं दि
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स्थिति व अनुभागका अपकर्षण करनेवाला नियमसे कृष्टियों को करता है । किन्तु स्थिति व अनुभागका उत्कर्षण करनेवाला कृष्टिका अकारक होता है। ऐसा समझना चाहिये ॥ ३२ ॥
[ १, ९-८, १६.
चार संज्वलन कर्मोंके अनुभाग के विषय में संज्वलनलोभकी जघन्य कृष्टिसे लेकर संज्वलनक्रोधकी अन्तिम उत्कृष्ट कृष्टि तक यथाक्रमसे अनन्तगुणित गुणश्रेणी है । यह कृष्टिका लक्षण है । ३३ ॥
कृष्टियों को करनेवाला पूर्वस्पर्द्धकों और अपूर्वस्पर्द्धकोंका वेदन करता है, कृष्टियों का वेदन नहीं करता । संज्वलनक्रोधकी प्रथमस्थितिमें आवलीमात्र शेष रहने पर कृष्टिकरणकाल समाप्त हो जाता है । कृष्टिकरणकाल के समाप्त होनेपर अनन्तर समय में कृष्टियों का वेदन करता है, अर्थात् द्वितीयस्थितिसे अपकर्षणकर कृष्टियों को उदयावली के भीतर प्रवेश कराता है । उस समय में संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध चार मास और स्थितिसत्व आठ वर्षप्रमाण होता है। तीन घातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध और स्थितिसत्व संख्यात वर्षसहस्रमात्र होता है । नाम, गोत्र व वेदनीय, इनका स्थितिसत्व
यदा तु मानेन प्रतिपद्यते, तदा उद्बलनविधिना क्रोधे क्षपिते सति शेषाणां पूर्वक्रमेण नत्र किट्टीः करोति । मायया चेत्प्रतिपन्नस्तर्हि क्रोधमानयोरुद्वलन विधिना क्षपितयोः सतोः शेषद्विकस्य पूर्वक्रमेण षट् किट्टीः करोति । यदि पुनर्लोभेन प्रतिपद्यते, तत उद्वलनविधिना क्रोधादित्रिके क्षपिते सति लोभस्य किट्टित्रिकं करोति । एष किट्टिकरण विधिः । पंचसंग्रह १, पृ. २६-२७.
१ जयध. अ. प. ११३२.
२ लोभजहण किट्टिमादिं कादूण जाव कोहसंजलणसव्वपच्छिम उकस्सकिट्टि त्ति महाकममवद्विदन्यदुसंजलणकम्माभागविसए एसा अनंतगुणा गुणओली दट्ठव्वा त्ति वृत्तं होदि । नयध. अ. प. ११३३,
३ अ - आप्रत्योः ' सेसा ' इति पाठः ।
४ पुव्वापुव्वप्फड्डयमणुह्वदि हु किट्टिकाओ णियमा । तस्सद्धा णिङ्कायदि पटमडिदि आवलीसेसे ।। लब्धि. ५१०.
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