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________________ ( २८ ) षट्खंडागमको प्रस्तावना ख्यानावरणादि ८ कषाय एवं मिश्र के अनुसार शेष ५, ये १३ मोहनीय; देवायु; देवगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र १०२ ); उच्च गोत्र; और ५ अन्तराय । ६. संयत जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ५ ज्ञानावरणीय सूक्ष्मसाम्पराय तक । निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय अपूर्वकरण के प्रथम सप्तम भाग तक, तथा निद्रानिद्रादि ५ को छोड़ शेष ४ अपूर्वकरण के द्वितीय भागसे लेकर सूक्ष्मसाम्पराय तक । असातावेदनीय प्रमत्तसंयत तक, तथा सातावेदनीय सयोगी तक । ४ संज्वलन कषाय एवं मिश्र के अनुसार पुरुषवेदादि ५ ये ९ मोहनीय प्रमत्तसे लेकर अपूर्वकरण तक, एवं ४ संज्वलन और पुरुषवेद ये पांच मोहनीय अनिवृत्तिकरण तक; तथा इसी गुणस्थानमें क्रमशः पुरुषवेदरहित ४ संज्वलन, क्रोध संज्वलनको छोड़ केवल ३ संज्वलन, एवं क्रोध मानको छोड़ केवल २ संज्वलन, सूक्ष्मसाम्पराय में केवल एक लोभसंज्वलन मोहनीय । देवायु अप्रमत्त गुणस्थान तक । देवगति आदि ३१, ३०, २९, या २८ नामकर्म अप्रमत्त व अपूर्वकरण संयतके ( सूत्र ९६-१०४ ), यशःकीर्ति नामकर्म अपूर्वकरण के ७ वें भागसे सूक्ष्मसाम्पराय संयत तक । उच्च गोत्र सक्ष्मसाम्पराय तक । ५ अन्तराय सूक्ष्मसाम्पराय तक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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