________________
२. स्थानसमुत्कीर्तनचूलिकानुसार स्थानक्रमसे प्रकृतियोंका बन्ध
१. मिथ्यादृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ५ ज्ञानावरणीय; ९ दर्शनावरणीय; २ वेदनीय; मिथ्यात्व, १६ कषाय, अन्यतम वेद, हास्य और रति, अथवा अरति और शोक; भय और जुगुप्सा, ये २२ मोहनीय; ४ आयु; नरकगति आदि २८ नामकर्म (सूत्र ६१) अथवा तिर्यंचगति आदि ३०, २९, २६, २५, या २३ नामकर्म ( सूत्र ६६-८३) अथवा मनुष्यगति आद २९ या २५ नामकर्म (सूत्र ९१-९४) अथवा देवगति आदि २८ नामकर्म (सूत्र १०६); नीच या उच्च गोत्र; और ५ अन्तराय ।
२. सासादन जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ५ ज्ञानावरणीय; ९ दर्शनावरणीय; २ वेदनीय; १६ कषाय, स्त्री व पुरुष वेदमेंसे अन्यतर वेद, हास्य और रति, अथवा अरति और शोक, भय और जुगुप्सा, ये २१ मोहनीय; नारकायुको छोड़ शेष ३ आयु; मनुष्यगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र ८९) अथवा देवगति आदि २८ नामकर्म ( सूत्र १०६); नीच या उच्च गोत्र; और ५ अन्तराय।
३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां - ५ ज्ञानावरणीय; निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय; २ वेदनीय, अप्रत्याख्यानादि १२ कषाय, पुरुषवेद, हास्य और रति, अथवा अरति और शोक, भय और जुगुप्सा, ये १७ मोहनीय; यहां आयुबन्ध होता नहीं; मनुष्यगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र ८७); उच्च गोत्र; और ५ अन्तराय ।
४. असंयतसम्यग्दृष्टि जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ५ ज्ञानावरणीय; निद्रानिद्रादिको छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय; मिश्रके अनुसार १७ मोहनीय; मनुष्य और देव आयु; मनुष्यगति आदि ३० नामकर्म ( सूत्र ८५-८६) अथवा २९ नामकर्म (सूत्र ८७.) अथवा देवगति आदि २९ नामकर्म (सूत्र १०२); उच्च गोत्र और ५ अन्तराय ।
५. संयतासंयत जीव द्वारा बन्धयोग्य प्रकृतियां ५ ज्ञानावरणीय; निद्रानिद्रादि ३ को छोड़ शेष ६ दर्शनावरणीय; २ वेदनीय, प्रत्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org