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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ९-८, १६. संकामओ । तदो अट्ठ कसाया ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण संकामिज्जति । अट्टहं कसायाणमपच्छिमे द्विदिखंडए उक्किण्णे तेसिं संतकम्मं सेसमावलियं पविङ्कं । तदो ट्ठिदिखंडयपुधतेण णिद्दाणिद्दा- पयलापयला थीणगिद्धीणं णिरयगदि तदाणुपुत्री-तिरिक्खगदिपाaraणामार्ण संतकम्मस्स' संकामगो जादो । तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण अपच्छिमे द्विदिखंड उक्किणे एदेसिं सोलसहं कम्माणं द्विदिसंतकम्मं से समावलियं पवि । तदो हिदिखंडयपुधत्तेण मणपजवणाणावरणीय - दाणंतराइयाणं च अणुभागो बंधेण देसघादी जादो । तदो द्विदिखंडयपुधत्तेण ओहिणाणावरणीय ओहिदंसणावरणीय - लाहंतराइयाणमणुभागो बंघेण देघादी जादा । तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण सुदणाणावरणीय अचक्खुदंसणावरणीयभोग तराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी जादो । तदो ठिदिखंडयपुधत्तेण चक्खुदसणा
कषायोका संक्रामक अर्थात् क्षपणाका प्रारम्भक होता है । तब आठ कपायें स्थितिकांड पृथक्त्वसे संक्रमणको प्राप्त करायी जाती हैं। आठ कषायोंके अन्तिम स्थितिकांडक उत्कीर्ण होनेपर उनका शेष सत्व आवलीको प्रविष्ट अर्थात् एक समय कम आवलीमात्र निषेकप्रमाण रहता है । पश्चात् स्थितिकाण्डक पृथक्त्वसे निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि, इन तीन दर्शनावरण तथा नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी और तिर्यचगतिके योग्य नामकर्म अर्थात् तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति आताप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण, इन तेरह नामकर्मों के सत्वका संक्रामक होता है । पश्चात् स्थितिकाण्डक पृथक्त्व से अन्तिम स्थितिकाण्डकके उत्कीर्ण होनेपर इन सोलह कर्मोंका शेष स्थितिसत्व आवली के भीतर प्रविष्ट होता है । तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्व से मन:पर्ययज्ञानावरणीय और दानांतरायका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाती है । पुनः स्थितिकाण्डकपृथक्त्वसे अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तरायका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है । तत्पश्चात् स्थितिकाण्डक पृथक्त्व से श्रुतज्ञानावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय और भोगान्तराय, इनका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है । पुनः स्थितिकाण्डक पृथक्त्वसे
१ ठिदिबंधसहस्सगदे अट्ठकसायाण होदि संक्रमगो । ठिदिखंडपुधत्तेण य तट्ठिदिसंतं तु आवलिपविहं ॥ लब्धि ४२९. अट्ठकसायाणमपच्छिमट्ठिदिखंडये चरिमफालिसरूत्रेण णिच्छेविदे तेसिमावलियपविट्ठसंत कम्मस्सेव समयूणावलियमेत्तणिसेगपमाणस्स परिसेसत्तसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभादो । जयध. अ. प. १०७८.
२ एत्थ णिरयतिरिक्खगईपाओग्गणामाओ त्ति वृत्ते णिरयनइणिरयगइपाओग्गाणुपुत्रीतिरिक्खगइतिरिक्खगइपाओग्गाणुपुत्रीएइंदियवीइंदियतीइंदिचउ रिंदियजादि आदावुज्जोवथावरमुहुमसाहारणणामाणं तेरसहं पयडीणं गहणं कायव्वं । जयध. अ. प. १०७८-१०७९.
३ प्रतिषु ' संतकम्मंसे ' इति पाठः ।
४ ठिदिबंधपुधत्तगदे सोलसपयडीण होदि संक्रमगो । ठिदिखंडपुधत्तेण य तट्ठिदिसतं तु आवलिपविद्धं ॥ लब्धि. ४३००
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