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१, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवज्जणविहाणं [३४९ कोडीए' । गुणसेढिणिक्खेवो जो अपुव्वकरणे णिक्खित्तो तस्स सेसे सेसे च भवदि। सव्वकम्माणं पि तिण्णि करणाणि वोच्छिण्णाणि । तं जहा- अप्पसत्थउवसामणाकरणं णिधत्तीकरणं णिकाचणाकरणं च । एदाणि सव्वाणि पढमसमयअणियट्टिस्स आवासयाणि परूविदाणि । से काले एदाणि चेत्र । णवरि गुणसेडी असंखेज्जगुणा । सेसे सेसे च णिक्खेवो । विसोधी च अणंतगुणा। एवं संखेज्जेसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु तदो अण्णो द्विदिवंधो असण्णिट्ठिदिबंधसमगो जादो । तदो संखेज्जेसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु चउरिदियट्टिदिबंधसमगो जादो । एवं तीइंदियसमगो बीइंदियसमगो एवमेइंदियट्टिदिबंधसमगो जादो। तदो संखेज्जेसु हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं पलिदोवमद्विदिबंधो जादो। ताधे णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं दिवङ्कपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । मोहणीयस्स वेपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । ताधे द्विदि
है । जो गुणश्रेणिनिक्षेप अपूर्वकरणमें निक्षिप्त था उसके शेष शेषमें ही निक्षेप होता है । अनिवृत्तिकरणमें सभी कर्मोके अप्रशस्तोपशामनाकरण, निधत्तिकरण और निकाचनाकरण, ये तीन करण व्युच्छिन्न हो जाते हैं। ये सब प्रथमसमयवर्ती अनिवृत्तिकरणके आवास कहे गये हैं । अनन्तर समयमें भी ये ही आवास हैं। विशेष केवल यह है कि यहां गुणश्रेणी असंख्यातगुणी है और शेष शेषमें निक्षेप है। विशुद्धि भी अनन्तगुणी है। इस प्रकार संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके व्यतीत होनेपर तब अन्य स्थितिबन्ध असंज्ञीके स्थितिबन्धके सदृश होता है । पुनः संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके वीतने पर चतुरिन्द्रियके स्थितिबन्धसदृश स्थितिबन्ध होता है। इसी प्रकार त्रीन्द्रियके सदृश, द्वीन्द्रियके सदृश और इसी प्रकार एकेन्द्रियके स्थितिबन्धके सदृश स्थितिबन्ध होता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके वीतनेपर नाम व गोत्र कर्मोका पल्योपममात्र स्थितिबन्ध होता है। उस समयमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण,
दनीय और अन्तराय, इनका डढ़ पत्यापमप्रमाण स्थितिवाला बन्ध होता है। मोहनीयका दो पल्योपममात्र स्थितिवाला बन्ध होता है । उस समयमें स्थितिसत्व लक्षपृथक्त्व
१ अंतोकोडाकोडिमेत्तं द्विदिसंतकम्ममपुवकरणपरिणामेहिं संखेज्जसहस्समेत्तहिदिखंडयघादेहि घादिदं संतं मुट्ठ ओहट्टियूण अंतोकोडाकोडीए सागरोवमलक्खपुधत्तपमाणं होदुणाणियट्टिपढमसमए द्विदमिदि भणिदं होदि । जयध. अ. प. १०७५
२ उदधिसहस्सपुधत्तं लक्खपुधत्तं तु बंध संतो य । अणियहिस्सादीए गुणसेटी पुवपरिसेसा ।। लब्धि.४१४. ३ उवसामणा णिवत्ती णिकाचणा तत्थ बोच्छिण्णा || लब्धि. ४११, ४ ठिदिबंधसहस्सगदे संखेजा बादरे गदा भागा। तत्थासण्णिस्स हिदिसरिसं ठिदिबंधणं होदि॥लब्धि.४१५.
५ ठिदिबंधसहरसगदे पत्तेयं चदुरतियविएईदी। ठिदिबंधसमं होदि हु ठिदिबंधमणुक्कमेणेव ॥ रुब्धि. ४१६.
६ एइंदियविदीदो संखसहरसे गदे हु ठिदिबंधे। पढेक्कदिवडदुर्ग ठिदिबंधो वीसियतियाणं । लब्धि. ४१५.
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