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________________ छखंडागमे जीवाणं ३५० ] संतकम्मं सागरोवमसदसहस्स पुधत्तं । जा णामा-गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो ताधे अप्पाबहुगं । तं जहा - णामागोदाणं द्विदिबंधो थोवो | णाणावरणीय दंसणावरणीय वेदणीय - अंतराइयाणं द्विदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ । अदिकंता सव्ये द्विदिबंधा देण अप्पा बहुअविधिणा आगदा । तदो णामा - गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिबंधे पुण्णे जो अण्णो द्विदिबंध सो संखेज्जगुणहीणो । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधों विसेसहीणो । ता अप्पा बहुअं - णामा - गोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं ठिदिबंधो तुल्लो संखेज्जगुणो । मोहणीयस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । एदेण कमेण डिदिबंध सहस्साणि गदाणि संखेज्जाणि । तदो णाणावरणीय दंसणावरणीय वेदणीय अंतराइयाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । ताधे मोहणीयस्स तिभागुत्तरपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । तदो जो अण्णो ट्ठिदिबंधो चदुण्हं कम्माणं सो संखेज्जगुणहीणो । ताधे अध्याबहुगं - णामागोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं द्विदिबंधों संखेज्जगुणो । मोहणीयस्स [ १, ९-८, १६. सागरोपमप्रमाण रहता है । जिस समय नाम व गोत्र कर्मोंका पल्योपमप्रमाण स्थितिवाला बन्ध होता है उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है - नाम गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध स्तोक है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय, इनका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । मोहनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पूर्व के सब स्थितिबन्ध इसी अल्पबहुत्वविधिसे आये हैं । नाम- गोत्र कर्मोंका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध पूर्ण होनेपर जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह संख्यातगुणा हीन होता है । शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध विशेष न है । उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है- नाम- गोत्र कमका स्थितिबन्ध स्तोक, चार कमका स्थितिबन्ध तुल्य संख्यातगुणा, और मोहनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्र वीत जाते हैं । तब ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय, इनका पल्योपममात्र स्थितिवाला बन्ध होता है । उस समय मोहनीयका विभागसे अधिक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । तत्पश्चात् चार कमका जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह संख्यातगुणा हीन होता है । उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है- नाम गोत्र कर्मोंका स्थितिवन्ध स्तोक, चार कर्मोंका स्थिति Jain Education International १ तक्काले ठिदिसतं लक्खपुधत्तं तु होदि उवहीणं । बंधोसरणा बंधो ठिदिखंडं संतमोसरदि । लब्धि. ४१८. २ अ-क प्रत्योः — अदिक्क्तो सव्वे विदिबंधो ' आप्रतौ ' अदिक्कतो सव्ये द्विदिबंधा' इति पाठः । ३ ण केवलमेसो चेत्र विदिबंधो एदेणप्पाबहुअत्रिहिणा पयट्टो, किंतु अइक्कंता सव्वे ट्टिदिबंधा एदेणेव कमेण पयट्टा त्ति जाणावणट्ठमिदमाह अदिक्कता सच्चे ट्टिदिबंधा एदेण अप्पाबहुअविहिणागदा । जयध. अ. प. १०७६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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