________________
१, ९–८, १६. ] चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए खइयचारितपडिवज्जणविहाणं
[ ३४३
कम्माणि अंतमुत्तट्ठदिं ठवेदि । काणि ताणि चत्तारि कम्माणि त्ति वुत्ते तणिण्णय णाणावरणादीणं णामणिद्देसो कओ । किमट्टमंतोमुहुत्तियं ठिदि ठवेदि ? उवसामयविसोधीदो खवगविसोधीणमाणंतियादो ।
वेदणीयं वारसमुत्तं द्विदिं वेदि, णामा-गोदाणमट्ठमुहुत्तट्ठिदिं ठवेदि, सेसाणं कम्माणं भिण्णमुहुत्तट्ठिदि ठवेदि ॥ १६ ॥ कममेदासि पयड़ीणमेत्तियमेत्तट्ठिर्दि ठवेदि ? पयडिविसेसादो । बारस य वेदणिज् णामा - गोदे य अट्ठ य मुहुत्ता ॥
ट्टिदिबंधोदु जहणो भिण्णमुद्दृत्तं तु सेसाणं' ॥ १९ ॥
एसा दोसु सुत्तेसु कुनद्धाणमुवसंहारगाहा । एदाणि दो वि तदसुत्ताणि देसामासियाणि । तेण एदेहि सूइदस्स अत्थस्स' परूवणा कीरदे । तं जधा - चारितमोह
चार कर्मोंकी अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थितिको स्थापित करता है। वे चार कर्म कौन हैं ? इस शंका निर्णयार्थ सूत्रमें ज्ञानावरणादिकोंका नामनिर्देश किया गया है ।
शंका - सम्पूर्ण चारित्रको प्राप्त करनेवाला क्षपक अन्तर्मुहूर्तमात्र ही स्थितिको स्थापित करता है ?
समाधान - चूंकि उपशामककी विशुद्धियोंसे क्षपककी विशुद्धियां अनन्तगुणी हैं, अतएव वह अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थितिको स्थापित करता है ।
सम्पूर्ण चारित्रको प्राप्त करनेवाला क्षपक वेदनीयकी बारह मुहूर्त, नाम व गोत्र कर्मोकी आठ मुहूर्त और शेष कर्मोंकी भिन्नमुहूर्त अर्थात् अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थितिको स्थापित करता है ॥ १६ ॥
शका - इन प्रकृतियोंकी इतनी मात्र स्थितिको किस लिये स्थापित करता है ? समाधान - प्रकृतियोंकी विशेषताके कारण उक्त प्रकृतियोंकी उतनीमात्र स्थितिको स्थापित करता है ।
वेदनीयका बारह मुहूर्त, नाम व गोत्रका आठ मुहूर्त, तथा शेष कर्मोंका अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य स्थितिबन्ध होता है ॥ १९ ॥
यह गाथा उक्त दोनों सूत्रोंमें कहे गये कालोंका उपसंहार करनेवाली है। ये दोनों ही अतीत सूत्र देशामर्शक हैं। इसी कारण इनसे सूचित अर्थकी प्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार है -- चारित्रमोहनीयकी क्षपणामें अधःप्रवृत्तकरणकाल, अपूर्व
१ वारस य वेयणीये णामे गोदे य अट्ठ य मुहुत्ता । मिण्णमुहुत्तं तु ठिदी जहणणयं सेसपंचपणं ॥ मो. क. १३९.
२ अ - आप्रमोः ' अद्धस्स ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org