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________________ १, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अप्पाबदुगं [३४१ वेदणीयाणं चरिमो असंखेज्जवस्सविदिगो बंधो असंखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स णामागोद-वेदणीयाणं पढमो असंखेज्जवस्सट्ठिदिगो बंधो असंखेज्जगुणो' । उवसामगस्स णामा-गोदाणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिगो पढमो द्विदिबंधो असंखेज्जगुणों । णाणावरण-दंसणावरण-वेदणीय-अंतराइयाणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिगो पढमो हिदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिओ पढमो डिदिबंधो विसेसाहिओ । चरिमद्विदिखंडयं संखेज्जगुणं । जाओ द्विदीओ परिहाइदण पलिदोवमहिदिगो बंधो जादो ताओ द्विदीओ संखेज्जगुणाओ। पलिदोवम संखेज्जगुणं । अणियट्टिस्स पढमसमये द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स अणियट्टिस्स चरिमसमए द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । अपुव्वकरणस्स पढमसमए हिदिबंधो संखेज्जगुणो । पडिवद नाम, गोत्र व वेदनीय कर्मोका असंख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला अन्तिम बन्ध असंख्यातगुणा है (८०)। उतरनेवालेके नाम, गोत्र व वेदनीय कर्मोंका असंख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला प्रथम बन्ध असंख्यातगुणा है (८१)। उपशामकके नाम व गोत्र कर्मोका पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र प्रथम स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है (८२)। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय, इनका पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र प्रथम स्थितिबन्ध विशेष अधिक है (८३)। मोहनीयका पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र प्रथम स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ( ८३ )। सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समयमें ज्ञानावरणादिकोंका अन्तिम स्थितिकांडक संख्यातगुणा है ( ८५ ) । जिन स्थितियों को कम कर पल्योपममात्र स्थितिवाला बन्ध हुआ है वे स्थितियां संख्यातगुणी हैं (८६)। पल्योपम संख्यातगुणा है (८७)। अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (८८)। उतरनेवालेके अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें स्थितिबन्ध संख्यात गुणा है (८९)। अपूर्वकरणके प्रथम समयमें स्थितिबन्ध १ चडपडणमोहचरिमं पदमं तु तहा तिघादियादीणं । असंखेज्जवस्सबंधो संखेज्जगुणक्कमो छण्हं ।। लब्धि. ३८५. २ चडणे णामदुगाणं पटमो पलिदोवमस्स संखेजो। भागो ठिदिस्स बंधो हेडिल्लादो असंखगुणा ।। लब्धि.३८६. ३ तीसियचउण्ह पढमो पलिदोवमसंखभागठिदिबंधो! मोहस्स वि दोण्णि पदा विससअहियक्कमा होति ।। लब्धि. ३८७. ४ प्रतिषु । पलिदोवममसंखेज्जगुणे' इति पाठः । जयधवलायां तु 'पलिदोवम संखेज्जगुणं' इत्येव पाठः। ५ ठिदिखंडयं तु चरिमं बंधोसरणहिदी य पल्लद्धं । पलं चडपडबादरपटमो चरिमो य ठिदिबंधो ॥ लब्ध. ३८८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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