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________________ ३४० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, १४. द्विदिबंधो बत्तीस वस्साणि । पडिवदमाणयस्स पुरिसवेदजहण्णट्ठिदिबंधो बत्तीस वस्साणि । तस्समए चेव संजलणाणं विदिबंधो चदुसट्ठी वस्साणि । उवसामगस्स पढमो संखेज्जवस्सिओ मोहणीयस्स द्विदिबंधो संखेज्जगुणो। पडिवदमाणयस्स चरिमो संखेज्जवस्सिओ मोहणीयस्स विदिबंधो संखेज्जगुणो। उवसामगस्स णाणावरण-दसणावरणअंतराइयाणं पढमो संखेज्जवस्सिओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स तिण्हं पादिकम्माणं चरिमो संखेज्जवस्सट्ठिदिओ बंधो संखेज्जगुणो। उवसामगस्स णामागोद-वेदणीयाणं पढमो संखेज्जवस्सट्ठिदिगो बंधो संखेज्जगुणो । पडिबदमाणयस्स णामा-गोद-वेदणीयाणं चरिमो संखेज्जवस्सट्ठिदिगो बंधो संखेज्जगुणो' । उवसामगस्स चरिमो असंखेज्जवस्सविदिगो बंधो मोहणीयस्स असंखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स पढमो असंखेज्जवस्सविदिगो बंधो मोहणीयस्सासंखेज्जगुणो । उवसामयस्स घादिकम्माणं चरिमो असंखेज्जवस्सद्विदिगो बंधो असंखेज्जगुणो । पडिबदमाणयस्स पढमो असंखेज्जवस्सट्ठिदिगो बंधो घादिकम्माणमसंखेज्जगुणो । उवसामयस्स णामा गोद स्थितिबन्ध बत्तीस वर्ष है (६७)। उतरनेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध बत्तीस वर्ष है (६८)। उसी समयमें ही संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध (उतरनेवालेके) चौंसठ वर्ष है (६९) । उपशामकके संख्यात वर्षवाला मोहनीयका प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (७०)। उतरनेवालेके संख्यात वर्षवाला मोहनीयका अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (७१)। उपशामकके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, इनका संख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (७२)। उतरनेवालेके तीन घातिया कर्मीका संख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला अन्तिम बन्ध संख्यातगुणा है (७३)। उपशामकके नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका संख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला प्रथम बन्ध संख्यातगुणा है (७४)। उतरनेवालेके नाम, गोत्र और वेदनीय, इनका संख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला अन्तिम बन्ध संख्यात गुणा है (७५)। उपशामकके असंख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला मोहनीयका अन्तिम वन्ध असंख्यातगुणा है (७६)। उतरनेवालेके असंख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला मोहनीयका प्रथम बन्ध असंख्यातगुणा है (७७)। उपशामकके असंख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला घातिया कर्मोंका अन्तिम बन्ध असंख्यातगुणा है (७८)। उतरनेवालेके असंख्यात वर्ष मात्र स्थितिवाला घातिया कर्मों का प्रथम बन्ध असंख्यातगुणा है (७९)। उपशामकके १पडणस्स तस्स दुगुणं संजलणाणं तु तत्थ दुट्ठाणे। बत्तीसं चउसट्ठी वस्सपमाणेण टिदिबंधो ॥ लब्धि. ३८३. २ चडपडणमोहपढमं चरिमं तु तहा तिघादियादीणं। संखेजवस्सबंधो संखेजगुणक्कमो कण्हं॥ लन्धि . ३८४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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