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१, ९–८, १४. }
चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए अप्पाबद्दुगं
[ ३३९
दिबंधो संखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स मोहणीयस्स जहण्णगो ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । उवसामगस्स णाणावरण- दंसणावरण-अंतराइयाणं द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । एदेसिं चेत्र कम्माणं पडिवमाणयस्स जहण्णगो ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । अंतोमुहुत्तो संखेज्जगुणो' । उवसामगस्स णामा-गोदाणं जहण्णगो द्विदिबंधो संखेज्जगुणो' । वेदणीयस्स जहण्णगो द्विदिबंधो विसेसाहिओ । पडिवदमाणयस्स णामा-गोदाणं जहण्णगो डिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव वेदणीयस्स जहण्णगो द्विदिबंधो विसेसाहिओ' । उवसामगस्स मायासंजलणजहण्णगो द्विदिबंधो मासो । तस्सेव पडिवदमाणयस्स जहणो द्विदिबंधो वे मासा । उवसामगस्स माणसंजलणजहण्णगो द्विदिबंधो वे मासा । पडिवदमाणयस्स तस्सेव जहण्णडिदिबंधो चत्तारि मासा । उवसामगस्स को संजलणजहणट्टिदिबंधो चत्तारि मासा | पडिवदमाणयस्स तस्सेव जहण्णट्ठिदिबंधो अट्ठ मासा । उवसामगस्स पुरिसवेदजहण्णट्ठिदिबंधो सोलस वस्त्राणि । तस्समए चैव संजलणाणं
वालेके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (५२) । उपशामकके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, इनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (५३) । इन्हीं कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध उतरनेवालेके संख्यातगुणा है (५४) । अन्तर्मुहुर्त संख्यातगुणा है (५५) । उपशामकके नाम व गोत्र कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (५६) । वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है (५७) । उतरनेवालेके नाम व गोत्र कर्मो का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ( ५८ ) । उसीके वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ( ५२ ) । उपशामक के संज्वलनमायाका जघन्य स्थितिबन्ध एक मास है (६०) । उतरनेवालेके उसी संज्वलनमायाका जघन्य स्थितिबन्ध दो मास है ( ६१ ) | उपशामक के संज्वलनमानका जघन्य स्थितिबन्ध दो मास है (६२) । उतरनेवालेके उसी संज्वलनमानका जघन्य स्थितिबन्ध चार मास है ( ६३ ) । उपशामक के संज्वलनक्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध चार मास है ( ६४ ) । उतरनेवालेके उसी संज्वलनक्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध आठ मास है (६५) । उपशामकके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह वर्ष है ( ६६ ) । उसी समय में ही ( उपशामकके ) संज्वलनचतुष्कका
१ अवराजेट्ठाबाहा चडपडमोहस्स अवरट्ठदिबंधो । चडपडतिघादि अवरट्ठिदिबंधंतोमुहुत्तो य ॥ लब्धि. ३७९. २ चमाणस्स य णामागोदजहण्णट्ठिदीण बंधो य । तेरसपदासु कमसो संखेण य होंति गुणियकमा ||
रुब्धि. ३८०.
३ चलतदियअवरबंधं पडणामागोदअवरठिदिबंधो । पडतदियरस य अवरं तिण्णि पदा होंति अहियकमा ॥ लब्धि. ३८१.
४ वडमायमाणकोहो मासादीद्गुण अवरठिदिबंधों । पडणे ताणं दुगुणं सोलसवस्साणि चलणपुरिसस्स ।। लब्धि. ३८२.
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