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१, ९- ८, १४. ] चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए णाणत्तविहाणं
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करेदि । ता व ओकड्डिदूग तिविधं पि कोधमावलियबाहिरे गुणसेडीए इदरेसिं कम्माणं गुणसेडीणिक्खेवणसरिसीए णिक्खिवदि गलिदसेसरूवेण । एदं णाणतं माणेण उवदिस्स उवसामगस्स पुरिसवेदयस्स ।
माया उवदिस्स उवसामगस्स केद्देही मायाए पढमट्ठिदी : कोघेण उवदिस्स arata माणस मायाए च जाओ पढमट्ठिदीओ ताओ तिणि वि पिंडिदाओ मायाए Tags मायाए पढमट्टिदी होदि । तदो मायं वेदंतो कोधं माणं मायं च उवसामेदि । तदो लोभमुवसामंतस्स णत्थि णाणत्तं । मायाए उवट्टिदो उवसामेदूण पुणो पडिवदमानयस्स लोभं वेदयमाणस्स णत्थि णाणत्तं ।
मायं वेदंतस्स णाणतं । तं जधा - तिविहाए मायाए तिविधस्स लोभस्स च गुणसेढीणिक्खेव इदरेहि कम्मेहि सरिसो, सेसे सेसे चणिक्खेवो । सेसे च कसाए मायं वेदतो ओट्टिहिदि । तत्थ गुणसेढिणिक्खेवं च इदरकम्मगुणसेडीणिक्खेवेण सरिसं काहिदि ।
लोभेण उवदिस्स उवसामगस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो । तं जहा - अंतरकरण
करता हुआ एक समय में तीन प्रकारके क्रोधको अनुपशान्त करता है। उसी समय में ही तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करके आवलीके बाहिर इतर कर्मोंके गुणश्रेणिनिक्षेपके सदृश गुणश्रेणी में गलित शेषरूपसे निक्षेपण करता है। मानसे उपस्थित पुरुषवेदी उपशामक के यह विशेषता है ।
शंका- मायासे उपस्थित उपशामकके मायाकी प्रथमस्थिति कितनी होती हैं ?
समाधान - क्रोध से उपस्थित हुए जीवके क्रोध, मान और मायाकी जितनी प्रथम स्थितियां हैं उन तीनोंके सम्मिलित प्रमाणरूप मायासे उपस्थित हुए जीवके मायाकी प्रथम स्थिति होती है। अतएव मायाका वेदन करनेवाला क्रोध, मान और मायाको उपशान्त करता है। लोभका उपशम करनेवालेके उससे कोई विशेषता नहीं है । मायासे उपस्थित हुआ उपशम करके पुनः नीचे उतरते हुए लोभका वेदन करनेवालेके विशेषता नहीं है ।
मायाका वेदन करनेवालेके विशेषता है । वह इस प्रकार है-तीन प्रकारकी माया और तीन प्रकारके लोभका गुणश्रेणिनिक्षेप इतर कर्मोंके सदृश और शेष शेषमें निक्षेप है । मायाका वेदन करनेवाला शेष कषायका अपकर्षण करता है। वहां गुणश्रेणिनिक्षेपको भी इतर कर्मोंके गुणश्रेणिनिक्षेपके सदृश करता है ।
लोभसे उपस्थित हुए उपशामककी विशेषताको कहते हैं । वह इस प्रकार है
१ प्रतिष्ठ 'माया' इति पाठः ।
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