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३३५ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १४. पढमसमए लोभस्स पढमट्ठिदिं करेदि । जद्देही कोधेण-उवविदस्स कोधस्स माणस्स मायाए च पढमट्ठिदी लोभस्स बादरसांपराइयपढमहिदी च तदेही लोभस्स पढमठिदी होदि । तदो सुहुमसांपराइयं पडिवण्णस्स णत्थि णाणत्तं । तस्सेव पडिवदमाणयस्स सुहुमसांपराइयं वेदंतस्स णत्थि णाणत्तं ।
पढमसमयबादरसांपराइयप्पहुडि णाणत्तं वत्तइस्सामो । तं जहा- तिविहस्स लोभस्स गुणसेडिणिक्खेवो इदरेहि कम्मेहि सरिसो । लोभं वेदयमाणो सेसे कसाए
ओकट्टिहिदि । गुणसेडिणिक्खेओ इदरेहि कम्मेहि गुणसेडिणिक्खेवेण सरिसो। सेसे सेसे च णिक्खिवदि । एदाणि णाणत्ताणि कोधेण उवसामेदुमुवद्विदउवसामयादो । णवरि जस्स कसायरस उदयेण चढिदो तम्हि ओवट्टिदे अंतरमाऊरेदि । एदे पुरिसवेदेणोवट्टिदस्स वियप्पा'।
इत्थिवेदेण उवद्विदस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो । तं जहा- अवेदो सत्तकम्मंसे उवसामेदि । सत्तण्डं पि उवसामणद्धा तुल्ला । एदं णाणत्तं, सेसा सव्वे
अन्तरकरणके प्रथम समयमें लोभकी प्रथमस्थितिको करता है। क्रोधसे उपस्थित जीवके क्रोध, मान और मायाकी जितनी प्रथमस्थिति है तथा जितनी लोभकी बादरसाम्प. रायिक प्रथमस्थिति है उतनी लोभकी प्रथमस्थिति है। इससे ऊपर सूक्ष्मसाम्परायिकको प्रतिपन्न अर्थात् सूक्ष्म लोभका वेदन करनेवालेके कुछ भी विशेषता नहीं है। उसीके नीचे उतरते समय सूक्ष्मसाम्परायिकका वेदन करते हुए विशेषता नहीं है।
बादरसाम्परायिकके प्रथम समयसे लेकर जो विशेषता है उसे कहते हैं। वह इस प्रकार है-तीन प्रकारके लोभका गुणश्रेणिनिक्षेप इतर कर्मोंके सदृश है । लोभका वेदन करते हुए शेष कषायोंका अपकर्षण करता है । गुणश्रेणिनिक्षेप इतर कर्मोंके गुणश्रेणिनिक्षेपके सदृश है। शेष शेषमें निक्षेपण करता है। क्रोधके साथ उपशमानेके लिये उपस्थित हुए जीवकी अपेक्षा मान, माया व लोभके उदयसे युक्त उपशामकोंके ये विशेषतायें हैं। विशेषता यह है कि जिस कपायके उदयसे श्रेणी चढ़ा था उसी कषायका अपकर्षण करनेपर अतरको पूर्ण करता है, अर्थात् अन्तरकरणमें नष्ट किये हुए निषेकोंका सद्भाव करता है । ये पुरुषवेदसे उपस्थित हुए जीवके विकल्प कहे गये हैं।
___ अब स्त्रीवेदसे उपस्थित हुए जीवकी विशेषताको कहते हैं । वह इस प्रकार हैस्त्रीवेदके उदय सहित क्रोधादि कषायोंके उदयसे श्रेणीपर आरूढ़ हुआ जीव अपगतवेदी होकर सात कर्माशोंको उपशमाता है । सातोका ही उपशामनकाल तुल्य है । यहां इतनीमात्र
१ नस्सुदएण य चडिदो तम्हि व उक्कट्टियम्दि पडिऊण । अंतरमाऊरेदि हु एवं पुरिसोदए चडिदो॥ कग्धि. ३६०.
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