________________
१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए पडिवदणविहाणं
[ ३२१ कसायाणं सेसे सेसे गुणसेडी णिक्खिविदव्वा' । पढमसमयकोधवेदगस्स वारसविहस्स वि कसायस्स संकमो होदि । ताधे ट्ठिदिबंधो चदुण्हं संजलणाणं पडिवण्णा अट्ट मासा। सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । एदेण कमेण संखेज्जेसु हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु मोहणीयस्स चरिमसमयचउबिहबंधगो जादो । ताधे मोहणीयस्स द्विदिबंधो चउसट्ठी वस्साणि अंतोमुहुत्तूणाणि । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । तदो से काले पुरिसवेदस्स बंधगो जादो। ताधे चेव सत्तण्हं कम्माणं पदेसग्गं पसत्थउवसामणाए सव्यमणुवसंतं । ताधे चेव सत्तकम्मंसे ओकड्डिदण पुरिसंवेदस्स उदयादिगुणसेडिं करेदि । छण्हं कम्मंसाणमुदयावलियबाहिरे गुणसेडिं करेदि । गुणसेडीणिक्खेवो वारसहं कसायाणं सत्तण्हं णोकसायाणं वेदणीयाणं सेसाणं च आयुगवज्जाणं कम्माणं गुणसेडीणिक्खेवेण तुल्लो । सेसे सेसे च णिक्खेवो । ताधे चेव पुरिसवेदस्स द्विदिबंधो बत्तीसं वस्साणि पडिवुण्णाणि । संजलणाणं द्विदिबंधो चदुसट्ठी वस्साणि । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । पुरिसवेदे अणुवसंते जावित्थिनिक्षेपण करने योग्य है। प्रथम समय क्रोधवेदकके वारह प्रकारकी ही कषायका संक्रमण होता है। उस समयमें चार संज्वलनोंका स्थितिवन्ध पूर्ण आठ मासप्रमाण होता है। शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षसहस्रमात्र होता है। इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके वीत जानेपर मोहनीयके चतुर्विध बंधका अन्तिम समय प्राप्त होता है । उस समयमें मोहनीयका स्थितिवन्ध अन्तर्मुहुर्त कम चौंसठ वर्षप्रमाण होता है। शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षसहस्रमात्र होता है। पश्चात् अनन्तर कालमें पुरुषवेदका बन्धक हो जाता है। उसी समय में ही सात कर्मीका प्रदेशाग्र प्रशस्त-उपशामना (सर्वकरणोपशामना) से रहित होकर सब अनुपशान्त हो जाता है। उसी समयमें सात कर्माशोंका अपकर्षण करके पुरुषवेदकी उदयादिगुणश्रेणीको करता है। छह कर्माशोंकी उदयावलीके बाहिर गुणश्रेणी करता है । बारह कषाय और सात नोकषायोंका गुणश्रेणिनिक्षेप वेदनीय एवं आयुको छोड़कर शेष कर्मों के गुणश्रेणिनिक्षेपके तुल्य होता है । शेष शेषमें निक्षेप होता है। उसी समयमें पुरुषवेदका स्थितिबन्ध बत्तीस वर्ष संज्वलनोंका स्थितिबन्ध चौसठ वर्ष और शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षसहस्रमात्र प्राप्त होता है । पुरुषवेदके अनुपशान्त होनेपर
१ ओदरगकोहपढमे कम्भसमाणया हु गुणसेढी । बादरकसायणं पुण एत्तो गलितावसेसं तु ॥ लब्धि. ३२१
२ ओदरगकोहपढमे संजलणाणं तु अट्टमासठिदी । छह पुण वस्साणं संखेजसहस्सवस्साणि ॥ लब्धि. ३२२.
३ ओदरगपुरिसपढमे सत्तकसाया पण उत्रसमणा । उणवीस कसायाणं छकम्माणं समाणगुणसेदी॥ लब्धि. ३२३.
४ पुंसंजलणिदराणं वस्सा बत्तीसयं तु चउसट्ठी। संखेजसहस्साणि ब तकाले होदि ठिदिबंधो॥ हन्धि, ३२४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org