________________
प्रकृतिसमुस्कीर्तन
मूलप्रकृति उ. प्रकृति
(२) नोकषाय
वेदनीय
५ आयु
६ नाम (पिंडप्रकृतियां) १ गति
Jain Education International
संज्वलन कोष
""
"
"
मान
माया
लोभ
१ स्त्रीवेद
२ पुरुषवेद
३ नपुंसकवेद ४ हास्य ५ रति
६ अरति
७ शोक
८ भय
९ जुगुप्सा
१ नारकायु २ तिचायु
३ मनुष्यायु
४ देवायु
१ नरक २ तिर्यच
३ मनुष्य
४ देव
विषय-परिचय
बन्धस्थान
मिथ्यादृष्टि से अनि. क. तक
"
19
सूक्ष्मसाम्पराय
तक
मिथ्यादृष्टि और
सासादन अनिवृत्तिकरण तक मिथ्यादृष्टि अपूर्वक तक
29
""
""
(प्रथम सम्यक्व अभिमुखके बन्धयोग्य है या नहीं
""
""
मिध्यादृष्टि मिथ्यादृष्टि और सासादन मिश्रको छोड़ असंयत तक
अप्रमत्त तक
। मिष्यारष्टि मिथ्या सासा.
27
तक
अप्रमत्त तक
""
39
नहीं
The
the she ghre
नहीं
नहीं
"}
""
स्थिति आबावा
४० को ४ व. स.
""
"
93
१० "
२० "
१० "
उत्कृष्ट
""
33
""
For Private & Personal Use Only
१५ को १३ ब. स. सा. X
१
८ वर्ष
"
33
37
२० को २ व. स.
३३ सा.
"
२
१
77
"
66
93
""
"
""
"
"
54
36
नहीं सातवीं पृथि वीके नारकी बांधते हैं
असंयत सम्य. देव नारकी १५ को. सा. १३व. स.
"
33
बांधते हैं
तिथेच मनुष्य १०.१. १.व. स. बांधते हैं
३३ सा. ३ पू. को. १० व. स.
३ पल्योपम
शुद्रभव
x इसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन ग्रहण करना चाहिये ।
स्थिति आबाधा
२ मास अन्तर्मु
१ मास
१ पक्ष
अन्तर्मुहूर्त
जघन्य
"
सा.
""
( २३ )
23
""
33
२० को. सा. २. व. स. ई-सा. X
23
33:
१० व. स.
33
""
33
17
""
""
""
===== 22
-
""
""
33
33
==
"
1:5
33
:
www.jainelibrary.org