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१. प्रकृतिसमुत्कीर्तन, स्थानसमुत्कीर्तन, तीनों दंडक व उत्कृष्ट और
जघन्य स्थितियोंकी तालिका
प्रकृतिसमुस्कीर्तन
उत्कृष्ट
जघन्य
बन्धस्थान
प्रथमसम्यक्त्व भभिमुखके बन्धयोग्य है या नहीं
मूलप्रकृति - उ. प्रकृति
स्थिति पति आबाधा | स्थिति
आगाथा
३०कोड़ा- ३ वर्ष- अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मु.
कोडी सागरोपम
मिथ्यादृष्टिसे कानावरणीय मतिज्ञाना
लेकर सू. सा. वरणादि ५
संयत तक दर्शनावरणीय १ नि.नि. ) मिथ्यादृष्टि
२ प्र.प्र. ३ स्त्यान. सासादन
मिथ्यात्वसे ४ निद्रा | अपूर्वकरणके ५ प्रचला प्र. सप्तम भाग
तक
६ चक्षुद. ७ अचक्षु. ८ अवधि. ९ केवल.
मिथ्यात्वसे सूक्ष्मसाम्पराय तक
"
,
अन्तर्मुहूर्त | ,,
वेदनीय
१३व. स. १२ मुहू.
१ साता. २ असाता.
मिथ्यात्वसे सयोगी तक मिथ्यात्वसे प्रमत्त तक
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०,
३,
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x
मिथ्यात्व
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७०
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७
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सा.X
मोहनीय १सम्यक्त्व. (अ) दर्शनमोह. २ मिथ्यात्व.
३ सम्यग्मि. (आ) चारित्रमो. | (१) कषाय- | अनन्तानु वेदनीय बन्धी
क्रोधादि ४
मिथ्यादृष्टि
४ ॥
ॐ सा.
"
सासादन
अप्रत्याख्याना. क्रोधादि ४
मिथ्याष्टिसे
असंयत सम्यग्दृष्टि तक
प्रत्याख्याना
वरण क्रोधादि ४
मिथ्याडष्ठिसे संयतासंयत
x इसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन ग्रहण करना चाहिये ।
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