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विषय- परिचय
(२१)
कारणों द्वारा व कब सम्यक्त्वकी प्राप्ति करते हैं इसका प्ररूपण किया गया हैं। आगे सूत्र ४४ से ७५ तक उक्त चारों गतियों में प्रवेश करने और वहांसे निकलने के समय जीवके कौन कौन गुणस्थान होना संभव हैं इसका निर्देश किया गया है। सूत्र ७६ से २०२ तक यह. बतलाया गया है कि उक्त गतियों से भिन्न भिन्न गुणस्थानों सहित निकलकर जीव कौन कौनसी गतियोंमें जा सकता है । अन्तिम सूत्र २४३ तक यह बतलाया गया है कि उक्त चार गतियों के निकलकर जिस अन्य गतिमें जावेंगे वहां वे कौन कौन से गुण प्राप्त कर सकते हैं। ये चारों विषय आगे चार पृथक् तालिकाओं में स्पष्ट कर दिये गये हैं अतएव उनके विषय में यहां विशेष कहने की आवश्यकता नहीं है ।
फिर सूत्र २०३ से जीव उस उस गतिसे
यह गत्यागतिका विषय सूत्रकारने दृष्टिवाद के पांच अंगोंमें प्रथम अंग परिकर्मके चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि पांच भेद के अन्तिम भेद वियाहपण्यत्ति ( व्याख्याप्रज्ञप्ति ) से ग्रहण किया है । ( पुस्तक १ पृ. १३० )
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