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षट्खंडागमकी प्रस्तावना उनके वेदनका काल प्रारम्भ होता है, जिसमें कृष्टियोंके बन्ध, उदय, अपूर्वकृष्टिनिर्माण, प्रदेशाग्रसंक्रमण, एवं सूक्ष्मसाम्परायकृष्टियोंका निर्माण किया जाता है (पृ. ३८२-४०६)।
यह जो विधान बतलाया गया है वह क्रोध कषाय व पुरुषवेदसे उपस्थित होनेवाले जीवका है। अब आगे क्रमसे मान, माया व लोभ तथा स्त्रीवेद व नपुंकसवेदसे उपस्थित हुए क्षपककी विशेषताएं बतलाई गई हैं (पृ. ४०७-४१०)। यह सब सूक्ष्मसाम्पराय' तकका कार्य हुआ जिसके अन्तमें कर्मोंके स्थितिबंधका प्रमाण बतलाकर आगे क्षीणकषाय गुणस्थानमें होनेवाले घातिया कोंकी उदीरणा, निद्रा-प्रचलाके उदय और सत्वका व्युच्छेद तथा अन्तमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मोंके सत्त्व व उदयके व्युच्छेदका निर्देश करके सयोगकेवली गुणस्थान प्राप्त कराया गया है (पृ. ४१०-४१२) ।
सयोगी जिन सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होते हुए एवं असंख्यातगुणश्रेणी द्वारा प्रदेशाननिर्जरा करते हुए विहार करते हैं व आयुके अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर वे केवलिसमुद्घात करते हैं जिसकी दंड, कपाट, मंथ एवं लोकपूरण क्रियाओंमें होनेवाले कार्य बतलाये गये हैं (पृ. ४१२-४१४)। इसके पश्चात् मन, वचन और काय योगोंके निरोधका विधान है। सूक्ष्मकायका निरोध करते समय अन्तर्मुहूर्त तक अपूर्वस्पर्द्धककरण और फिर अन्तर्मुहर्त तक कृष्टिकरण क्रियायें भी होती हैं जिनके अन्तमें योगका पूर्णतः निरोध हो जाता है और सर्व कर्मोकी स्थिति शेष आयुके बराबर हो जाती है। बस, यही जीव अयोगी हो जाता है जहां सर्व कर्माश्रवका निरोध, शैलेशी वृत्ति एवं समुच्छिन्नक्रिय-आनिवृत्ति शुक्लध्यान होता है। इस अन्तर्मुहूर्तके द्विचरम समयमें ७३ और अन्तिम समयमें शेष १२ प्रकृतियोंकी सत्ताका विनाश हो जानेसे जीव सर्व कर्मसे वियुक्त होकर सिद्ध हो जाता है ।
(सूत्रकारने यह विषय दृष्टिवादके पांच अंगोंमेंसे द्वितीय अंग सूत्रपरसे संग्रह किया है ( पुस्तक १, पृ. १३०, व प्रस्तावना पृ. ७४)। धवलाकारने उसका जो विस्तार किया है उसके आधारका यद्यपि उन्होंने स्पष्टीकरण नहीं किया, पर मिलानसे निश्चयतः ज्ञात होता है कि उन्होंने वह कषायप्राभृतके चूर्णिसूत्रोंसे लिया है। यथार्थतः बहुतायतसे उन्होंने उक्त चूर्णसूत्रोंको ही जैसाका तैसा उद्धृत किया है जैसा कि प्रस्तुत चूलिकामें जगह जगह दी हुई टिप्पणियोंपरसे ज्ञात हो सकेगा।)
९ गत्यागति चूलिका ___ इस चूलिकाके चार विभाग किये जा सकते हैं। पहले ४३ सूत्रोंमें भिन्न भिन्न नारकी तिर्यच, मनुष्य व देव जिनबिम्बदर्शन, धर्मश्रवण, जातिस्मरण व वेदना इन चारमेंसे किन किन .
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