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३१०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १४. जाधे कोधस्स बंधोदया वोच्छिण्णा ताधे पाए तिविहस्स माणस्स उवसामओ । ताधे संजलणाणं विदिबंधो चत्तारि मासा अंतोमुहुत्तेण ऊणया, सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । माणसंजलणस्स पढमहिदीए तिसु आवलियासु समऊणासु सेसासु दुविहो माणो माणसंजुलणे ण संछुब्भदि, मायासंजलणे संछुब्भदि । पडिआवलियाए सेसाए आगाल-पडिआगालो वोच्छिण्णो । पडिआवलियाए एक्कम्हि समए सेसे माणसंजलणस्स समऊणदोआवलियमेत्तबंधे मोत्तूण सेसतिविहस्स माणस्स संतकम्ममुवसंत । ताधे माण-माया-लोभसंजलणाणं दुमासहिदिओ बंधो । सेसाणं कम्माणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि' ।
तदो से काले मायासंजलणमोकड्डिद्ण मायासंजलणस्स पढमट्टिदिं करेदि । ताधे पाए तिविहाए मायाए उवसामओ । माया-लोहसंजलणाणं द्विदिबंधो वे मासा
बन्ध व उदय व्युच्छित्तिको प्राप्त हुआ था तभीसे तीन प्रकारके मानका उपशामक होता है । उस समय संज्वलनचतुष्कका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम चार मासप्रमाण होता है, तथा शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षमात्र होता है। संज्वलनमानकी प्रथमस्थितिमें एक समय कम तीन आवलियोंके शेष रहनेपर दो प्रकारके (अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान) मानको संज्वलनमानमें नहीं स्थापित करता है, किन्तु संज्वलनमायामें स्थापित करता है। प्रत्यावलीके शेष रहनेपर आगाल व प्रत्यागाल व्युच्छित्तिको प्राप्त हो जाते हैं। प्रत्यावलीमें एक समय शेष रहनेपर संज्वलनमानके एक समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंको छोड़कर शेष तीन प्रकारके मानका सत्व उपशमको प्राप्त हो चुकता है। तब संज्वलन मान, माया और लोभ, इनका दो मासप्रमाण स्थितिवाला बन्ध होता है। शेष कर्मोका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षसहस्रमात्र होता है।
तत्पश्चात् अनन्तर कालमें संज्वलनमायाका अपकर्षण कर संज्वलनमायाकी प्रथमस्थितिको करता है। तबसे तीन प्रकारकी मायाका उपशामक होता है। संज्वलन
१ माणदुगं संजलणगमाणे संहदि जाव पढमठिदी। आवलितियं तु उवारं मायासंजलणगे य संछुहदि । लब्धि २७५.
___२ माणस्स य पदमठिदी आवलिसेसे तिमाणमुवसंतं । ण य णवकं तत्थंतिमबंधुदया होति माणस्स ॥ लब्धि. २७६.
३ माणस्स य पढमठिदी सेसे समयाहिया तु आवलिय । तियसंजालणगबंधो दुमास सेसाण कोहआलावो॥ लब्धि. २७४.
४ से काले मायाए पढमहिदिकारवेदगो होदि। माणस्स य आलावो दव्वस्स विभंजणं तत्थ ॥ लन्धि, २७७.
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