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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवज्जणविहाणं । ३०९ तिण्णि आवलियाओ सेसाओ त्ति । तिसु आवलियासु समऊणासु सेसासु तत्तो पाए दुविहो कोधो कोधसंजुलणे' ण संछुब्भदि, माणसंजुलणे संछुब्भदि । जाधे कोधसंजलणस्स पढमहिदीए समऊणा आवलिया सेसा ताधे चेव कोधसंजलणस्स बंधोदया वोच्छिण्णा'।
माणसंजुलणस्स पढमसमयवेदगो पढमट्ठिदिकारओ च । पढमट्ठिदि करेमाणो उदए पदेसग्गं थोवं देदि । से काले असंखेज्जगुणं । एवमसंखेज्जगुणाए सेडीए जादि जाव पढमट्ठिदीए चरिमसमओ त्ति । विदियट्ठिदीए जा आदिद्विदी तिस्से असंखेज्जगुणहीणं देदि, तदो विसेसहीणं देदि । एवं जाव अप्पप्पणो अइच्छावणावलियमपत्तमिदि ।
प्रथमस्थितिमें तीन आवलियां शेष रहने तक दो प्रकारके (अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान) क्रोधको संज्वलनक्रोधमें स्थापित करता है। एक समय कम तीन आवलियोंके शेष रहनेपर तबसे लेकर उक्त दोनों प्रकारके क्रोधको संज्वलनक्रोधमें नहीं स्थापित करता है, किन्तु संज्वलनमानमें स्थापित करता है । जब संज्वलनकोधकी प्रथमस्थितिमें एक समय कम आवलिमात्र शेष रहती है तभी संज्वलनक्रोधका बन्ध व उदय व्युच्छिन्न हो जाता है।
उस समयम संज्वलनमानका प्रथम समय घेदक और प्रथमस्थितिका कर्ता भी होता है । प्रथमस्थितिको करनेवाला उस कालमें उदयमें स्तोक प्रदेशाग्रको देता है। अनन्तर कालमें असंख्यातगुणे प्रदेशाग्रको देता है। इस प्रकार असंख्यातगुणित श्रेणीद्वारा प्रथमस्थितिके अन्तिम समय तक देता चला जाता है। द्वितीयस्थितिमें जो आदि स्थिति है उसमें असंख्यातगुणित हीन प्रदेशाग्रको देता है। तत्पश्चात् विशेष हीन प्रदेशाग्रको देता है । इस प्रकार जब तक अपनी अपनी अतिस्थापनावली अप्राप्त है तब तक उक्त क्रमसे देता चला जाता है। जब संज्वलनक्रोधका
१ प्रतिषु ' दुविहो कोधसंजलणो' इति पाठः ।
२ कोहदुगं संजलणगकोहे संहदि जाव पढमठिदी। आवलितियं तु उवारं संहदि दु माणसंजलणे ॥ लब्धि. २७०.
३ कोहस्स पढमठिदी आवलिसेसे तिकोहमुवसंतं । ण य णवकं तत्थंतिमबंधुदया होंति कोहस्स ॥ लब्धि. २७..
४ से काले माणस्स य पढमद्विदिकारवेदगो होदि । पढमहिदिम्मि दव्वं असंखगुणियक्कमे देदि ॥ लब्धि. २७२. ५प्रतिषु जदि' इति पाठः।
६ प्रतिषु 'कुदो' इति पाठः । ७पढमहिदिसीसायो विदियादिम्हि य असंखगुणहीणं । तच विसेस हीण जाव अइरावणमपतं॥ लब्धि. २७३.
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