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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,९-८, १४. बझंति, ण वेदिज्जंति य, तेसिमुक्कीरिज्जमाणपदेसम्गं सट्ठाणे ण देदि, बज्झमाणीणं पयडीणमणुक्कीरमाणीसु द्विदीसु च देदि। जे कम्मंसा बझंति, ण वेदिज्जंति तेसिमुक्कीरिज्जमाणपदेसग्गं वज्झमाणीणं पयडीणमणुक्कीरमाणीसु द्विदीसु देदि । एदेण कमेण अंतरमुक्कीरमाणमुक्किण्णं ।।
तावे चेत्र मोहणीयस्स आणुपुचीसंकमो, लोभस्स असंकमो, मोहणीयस्स एगट्ठाणीओ बंधो, णउंसयवेदस्स पढमसमयउवसामगो, छसु आवलियासु गदासु उदीरणा, मोहणीयस्स एगट्ठाणीओ उदओ, मोहणीयस्स संखेज्जवस्सहिदीओ बंधो, एदाणि सत्त करणाणि अंतरकदपढमसमए होति।
जधा संसारावत्थाए आवलियादिक्कंतमुदीरिज्जदि तधा एत्थ छावलियादिक्कमणेण विणा आवलियादिक्कंतं किण्ण उदीरिज्जदि ? ण एस दोसो, खवगुवसामयाणं अक्खवग-अणुवसामगेहि साधम्माभावा । जो जाए जाईए पडिवण्णो, सो ताए चेव
किये जानेवाले प्रदेशाग्रको स्वस्थानमें नहीं देता है, वध्यमान प्रकृतियोंकी उत्कीर्ण की जानेवाली स्थितियों में देता है। जो कांश बंधते हैं किन्तु उदयको प्राप्त नहीं हैं, उनके उत्कीर्ण किये जानेवाले प्रदेशाग्रको बध्यमान प्रकृतियोंकी उत्कीर्ण न की जानेवाली स्थितियों में देता है। इस क्रमसे उत्कीर्ण किया जानेवाला अन्तर उत्कीर्ण हो गया।
. तभी मोहनीयका आनुपूर्वीसंक्रमण (१) लोभका असंक्रमण (२) मोहनीयका पकस्थानीय (लतासमान ) बन्ध (३) नपुंसकवेदका प्रथमसमयवर्ती उपशामक (४) छह आवलियोंके व्यतीत होनेपर उदीरणा (५) मोहनीयका एक स्थानीय (लतासमान) उदय (६) मोहनीयका संख्यात वर्षमात्र स्थितिवाला बन्ध (७), ये सात करण अन्तर कर चुकनेके पश्चात् प्रथम समयमें होते हैं।
शंका-जिस प्रकार संसारावस्थामें आवलिमात्र कालका अतिक्रमण होनेपर उदीरणा होती है, उसी प्रकार यहां छह आवलियोंके अतिक्रमणके विना आवलिमात्र कालके बीतनेपर क्यों नहीं उदीरणा होती?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, क्षपक और उपशामकोंकी अक्षपक और अनुपशामकोंके साथ समानता नहीं है। जो धर्म जिस जातिमें प्राप्त है वह उसी
१ अ-आप्रत्योः ' चडेदि' इति पाठः
२ सत्त करणाणि यंतरकदपढमे होंति मोहणीयस्स। इगिठाणियपंधुदओ ठिदिबंधे संखवस्सं च ॥ अणुचुचीसंकमणं लोहस्स असंकमं च संढस्स । पटमोवसामकरण छायलितीदेसुदीरणदा ॥ लब्धि, २४८-२४९.
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