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३००] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १४. देसघादी होदि । तदो संखेज्जेसु द्विदिबंधेसु गदेसु सुदणाणावरणीय-अचक्खुदंसणावरणीय-भोगंतराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी होदि । तदो संखेज्जेसु टिदिबंधेसु गदेसु चक्खुदंसणावरणीयस्स अणुभागो बंधेग देसघादी होदि । तदा संखेज्जेसु द्विदिबंधेसु गदेसु आभिणिबोहिय-परिभोगतराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी होदि। तदो संखेज्जेसु द्विदिबंधेसु गदेसु वीरियंतराइयस्स अणुभागो बंधेण देसघादी होदि। एदेसि कम्माणं सव्वो अक्खवगो अणुवसामगो च सयो सव्यधादिअणुभागं बंधदि । एदेसु कम्मेसु बंधण देसघादित्तं पत्तेसु द्विदिवंधो मोहणीए थोत्रो । णाणावरण-दंगणावरण-अंतराइएसु द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो । णामा-गोदेसु हिदिबंधो असंखेज्जगुणो ! वेदणीए द्विदिबंधो विसेसाहिओ।
तदो देसघादिकरणादो संखेज्जेसु विदिबंधसहस्सेतु गदेसु अंतरकरणं बारसण्हं कसायाणं णवण्हं णोकसायाणं च करेदि । णत्थि अण्णस्स कम्मरस अंतरकरणं । जं संजुलणं वेदयदि, जं च वेदं वेदयदि, एदेसिं दोण्हें कम्मागं पढमहिदीओ अंतोमुहुत्ति
जाता है। तत्पश्चात् पुनः संख्यात स्थितिवन्धोंके वीतनेपर श्रुतज्ञानावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, और भोगान्तराय, इनका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है। तत्पश्चात् पुनः संख्यात स्थितिवन्धोंके व्यतीत होनेपर चक्षुदर्शदावरणीयका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है । पश्चात् पुनः संख्यात स्थितिवन्धोंके वीतनेपर मतिज्ञानावरणीय
और परिभोगान्तरायका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है। पश्चात् पुनः संख्यात स्थितिबन्धोंके वीतनेपर वीर्यान्तरायका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो जाता है। सब अक्षपक और सब ही अनुपशामक इन कर्मोंके सर्वघाती अनुभागको बांधते हैं। इन कौके बन्धसे देशघातित्वको प्राप्त होनेपर मोहनीयमें स्थितिबन्ध स्तोक होता है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, इनमें स्थितिबन्ध असंख्यातगुमा होता है। नाम व गोत्रमें स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है। वेदनीयमें स्थितिवन्ध विशेष अधिक होता है।
इसके पश्चात् देशघातिकरणसे संख्यात स्थितिवन्धसहनोंके वीतनेपर बारह कषाय और नव नोकषायोंका अन्तरकरण करता है। अन्य कर्मका अन्तरकरण नहीं है । जो संज्वलन उदयको प्राप्त है और जो वेद उद्यको प्राप्त है, इन (संज्वलनचतुष्कोसे उदयप्राप्त कोई एक और वेदत्रयमेंसे उदयप्राप्त कोई एक) दोनों कर्मोकी प्रथम स्थितियोंको
१ ठिदिवंधसहस्सगदे मणदाणा तत्तिये वि ओहिदुगं । लामं व पुणो वि सुदं अचक्खु भोगं पुणो चक्खु॥ पुणरवि मदिपरिभोगं पुणरवि विरयं कमेण अणुभागो। बंधेण देसवादी पल्लासखं तु ठिदिबंधे ।। लब्धि- २३९-३४०.
२ अस्माद्देशघातिकरणप्रारम्भात्यागवस्थायां संसारावस्थायां च सर्वघातिस्पर्धकानुभागमेव बन्नातीत्यर्थः। कान्धि. २३९-२४० टीका.
३ तो देसघातिकरणावरिं तु गदेसु तत्तियपदेसु । इगिवीसमोहणीयाणंतरकरणं करेदीदिलब्धि. २४१.
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