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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवग्जणविहाणं [२९९ द्विदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं द्विदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । वेदणीयस्स विदिबंधो असंखेज्जगुणो । एदेण अप्पाबहुगविधिणा बहुएसु ट्ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु एक्कसराहेण तिहं कम्माणं द्विदिबंधो णामा-गोदाणं द्विदिबंधादो असंखेज्जगुणहीणो जादो। वेदणीयट्ठिदिबंधो वि तत्तो विसेसाहिओ जादो। तावे अप्पाबहुगं- मोहणीयस्स द्विदिबंधो थोवो । णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं द्विदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । णामा-गोदाणं ठिदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । वेदणीयट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ।
एदेण अप्पाबहुगविधिणा संखेज्जाणि द्विदिबंधसहस्साणि कादूण उवरि गच्छमाणस्स बज्झमाणपयडीणं ट्ठिदिबंधो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव । तदो असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा च जादा । तदो संखेज्जेसु विदिबंधसहस्सेसु गदेसु मणपज्जवणाणावरणीय-दाणंतराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी होदि । तदो संखेज्जेसु द्विदिवंधेसु गदेसु ओहिणाणावरणीय-ओहिदंसणावरणीय-लाहंतराइयाणमणुभागो बंधेण
स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा है। शानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, इनका स्थितिवन्ध तुल्य असंख्यातगुणा है। वेदनीयका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा है। इस अल्पबहुत्वविधिसे वहुत स्थितिवन्धसहस्रोंके वीत जानेपर एक साथ तीनों कर्मोंका स्थितिबन्ध नाम-गोत्र प्रकृतियोंके स्थितिवन्धसे असंख्यातगुणा हीन हो जाता है। वेदनीयका स्थितिवन्ध भी नाम-गोत्र प्रकृतियोंके स्थितिबन्धसे विशेष अधिक हो जाता है। उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है- मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय, इनका स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा है। नाम-गोत्र प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा है। वेदनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
इस अल्पबहुत्वविधिसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंको करके ऊपर जानेवाले जीवके वध्यमान प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र ही रहता है । तब असंख्यात समयप्रवद्धोंकी उदीरणा भी होती है । पुनः संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके व्यतीत होनेपर मनःपर्ययज्ञानावरणीय और दानांतरायका अनुभाग बन्धसे देशघाती होता है। तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोंके वीतनेपर अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय, इनका अनुभाग बन्धसे देशघाती हो
तेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेहादु। तीसियघादितियाओ असंखगुणहीणया होंति ॥ तकाले वेयणियं णामागोदाद साहियं होदि । इदि मोहतीसवीसियवेयणियाणं कमो जादो ॥ लान्ध. २३६-२३७.
२ तीदे बंधसहस्से पल्लासखेज्जयं तु ठिदिबंधो। तत्थ असंखेज्जाणं उदीरणा समयपबद्धाणं ॥ लब्धि. २३८.
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