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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवजणविहाणं [२९६ गलिदसेसा उदयावलियबाहिरे आयुगवज्जाणं कम्माणं णिक्खित्ता। विदियसमए द्विदिअणुभागखंडय-ट्ठिदिबंधा ते चेव' । णवरि पढमसमए ओकड्डिददव्बादो असंखेज्जगुणं दव्यमोकडिण उदयावलियबाहिरट्ठिदिप्पहुडि गलिदसेसं गुणसेडिं करेदि । एवमतोमुहुर्त गंतूग पढमो अणुभागखंडगो पददि । एवमणुभागखंडयसहस्सेसु गदेसु तदो पढमो हिदिखंडओ पढमो द्विदिबंधो अण्णेगो अणुभागखंडओ च जुगवं णिट्ठिदाओ। तदो से काले अण्णो विदिबंधो, अण्णो द्विदिखंडगो, अण्णो अणुभागखंडओ च आढत्तो। गुणसेडी पुण अपुव्वकरणद्धादो अणियट्टीकरणद्धादो सुहुमसांपराइयअद्धादो च विसेसाहिया होदण जा पुवं कदा सा चेव एत्थ वि । णवरि गलिदसेसा । अणेण आदीदो प्पहुडि विदिखंडयपुधत्ते गदे णिदा-पयलाणं बंधवोच्छेदो भवदि । अपुव्यकरणद्धं सत्त खंडाणि कादण पढमखंडे वोच्छिण्णा इदि उत्तं होदि । तदो अंतोमुहुत्ते गदे पर
अपूर्वकरणके प्रथम समयमें आयुको छोड़ शेष कर्मोंकी गुणश्रेणी उदयावलिसे बाह्यमें निक्षिप्त है। अपूर्वकरणके द्वितीय समयमें स्थितिकांडक, अनुभागकांडक और स्थितिबन्ध वे ही हैं। विशेष यह है कि प्रथम समयमें अपकृष्ट द्रव्यस असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण कर उदयावलिसे वाह्य स्थितिसे लेकर गलितशेष गुणश्रेणीको करता है। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त जाकर प्रथम अनुभागकाण्डक नष्ट होता है। इस प्रकार अनुभागकाण्डकसहस्रोंके बीतने पर तत्पश्चात् प्रथम स्थितिकाण्डक, प्रथम स्थितिबन्ध और एक अन्य अनुभागकांडक, ये एक साथ ही समाप्त होते हैं। तत्पश्चात् अनन्तर समयमें अन्य स्थितिबन्ध, अन्य स्थितिकांडक और अन्य अनुभागकांडकका प्रारम्भ हुआ गुणश्रेणी अपूर्वकरणकालसे, अनिवृत्तिकरणकालसे और सूक्ष्मसाम्परायिककालसे विशेष अधिक होकर जो पूर्वमें की थी वही यहां भी है। विशेषता केवल यह है कि वह यहां गलितशेष है । इस क्रमसे आदिसे लेकर स्थितिकांडकपृथक्त्वके व्यतीत होनेपर निद्रा व प्रचलाकी बन्धव्युच्छित्ति होती है । अपूर्वकरणकालके सात खण्ड करके प्रथम खण्डमें निद्रा व प्रचलाकी बन्धव्युच्छित्ति होती है, यह उपर्युक्त कथनका अभिप्राय है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होनेपर परभविक नामकर्मोंकी, बन्धव्युच्छित्ति होती है।
विशेषार्थ- नामकर्मकी जिन प्रकृतियोंका परभवसम्बन्धी देवगतिके साथ बंध होता है उन्हें परभविक नामकर्म कहा गया है। ऐसी प्रकृतियां कमसे कम सत्ताईस और अधिकसे अधिक तीस होती हैं देवगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकको छोड़कर शेष चार शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक और आहारक आंगोपांग, देवगत्यानुपूर्वी,
१ प्रतिषु ' ते चे' इति पाठ । २ अ आप्रत्योः ‘आधतो' इति पाठः। ३ प्रतिषु · अंतोमुहत्तगदेसु ' इति पाठः।
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