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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-८, १४.
द्विदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं । दंसणमोहणीयउवसामण अणियद्वीअद्धाए संखेज्जेसु भागे गदेसु सम्मत्तस्स असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा ।
तदो अंतोमुहुतं गंतूण दंसणमोहणीयस्स अंतरं करेदि । तं जधासम्मत्तस्स पढमट्ठिदिमंतोमुहुत्तमेत्तं मोत्तूण अंतरं करेदि, मिच्छत्त- सम्मामिच्छत्ताणमुदयावलियं मोत्तूण अंतरं करेदि । अंतरहि उक्कीरिज्जमाणपदेसग्गं विदियट्ठिदिम्हि ण संछुहृदि, बंधाभावादो सम्बमाणेण सम्मत्तपढमडिदिम्हि णिक्खिवदि । सम्मत्तपदेसग्गमप्पणो पढमट्ठिदिम्हि चैव संछुहदि । मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्त-सम्मत्ताणं विदियट्ठिदिपदेसग्गं ओकड्डिण सम्मत्तपढमट्ठिदए देदि, अणुक्कीरिज्जमाणासु हिदी च देदि । सम्मत्तपढमट्ठिदिसमाणासु द्विदीसु दि
है | दर्शनमोहनीयके उपशमाने में अनिवृत्तिकरणकालके संख्यात भागोंके व्यतीत होनेपर सम्यक्त्वप्रकृतिके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है।
इसके पश्चात् अन्तर्मुहूर्त काल जाकर दर्शनमोहनीयका अन्तर करता है । वह इस प्रकार है - सम्यक्त्वप्रकृतिको अन्तर्मुहूर्तमात्र प्रथमस्थितिको छोड़कर अन्तर करता है तथा मिथ्यात्व व सम्पग्मिथ्यात्व प्रकृतियोंकी उद्यावलीको छोड़कर अन्तर करता है । इस अन्तरकरण में उत्कीर्ण किये जानेवाले प्रदेशाशको द्वितीय स्थितिमें नहीं स्थापित करता है, किन्तु वन्धका अभाव होने से सबको लाकर सम्यक्त्वप्रकृतिकी प्रथम स्थिति में स्थापित करता है । सम्यक्त्वप्रकृतिके प्रदेशाय को अपनी प्रथमस्थितिमें ही स्थापित करता है । मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति के द्वितीयस्थितिसम्बन्धी प्रदेशका अपकर्षण करके सम्यक्त्वप्रकृतिकी प्रथम स्थितिमें देता है, और अनुत्कीर्य - माण (द्वितीय स्थितिकी) स्थितियों में भी देता है। सम्यक्त्वप्रकृति की प्रथम स्थिति के
१ ठिदिसत्तमपुव्वदुगे संखगुणूणं तु पढमदो चरिमं । उवसामण अणिपट्टीसंखाभागासु तदासु ॥ लब्धि. २०६.
२ सम्मरस असंखेज्जा समयपत्रद्धाणुदीरणा होदि । तत्तो मुहुत्तअंते दंसणमोहंतरं कुणइ || लब्धि. २०७. ३ अंतोमुहुत्तमेत्तं आवलिमेत्तं च सम्मतियठाणं । मोत्तूण य पढमट्टिदिं दंसणमोहंतरं कुणइ ॥
लब्धि. २०८.
४ सम्मत्तपय पदमट्ठिदिम्मि संछुहृदि दंसणतियाणं । उक्कीरयं तु दव्वं बंधाभावादु मिच्छस्स ||
लब्धि. २०९.
५ विदियट्ठिदिस्स दव्वं उक्कट्टिय देदि सम्मपदमम्मि । विदियट्ठिदिहि तस्स अणुक्कीरिज्जतमाणम्हि ॥ कन्धि. २१०.
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