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________________ १, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवजणविहाणं [२८७ अंतरिय उप्पण्णत्तादो । तस्सेव उक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं, उवरि असंखेज्जलोगमेत्त. छट्ठाणाणि गंतूणुप्पत्तीदो। संजमासंजमं गच्छमाणस जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं, अणेयाणि छट्ठाणाणि अंतरिय उप्पत्तीदो। तस्सव उक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं । कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो। कम्मभूमियस्स संजमं पडिवज्जमाणस्स जहण्णसंजमट्ठाणमणंतगुणं । कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो। ( अकम्मभूमियस्स संजमं पडिवज्जमाणयस्स जहण्णयं संजमाणमणंतगुणं । कुदो ? असंखेज्जलागमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो । ) तस्सेव उक्कस्सयं संजमं पडिवज्जमाणम्स संजमट्ठाणमणंतगुणं । कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो । कम्मभूमियस्स संजमं पडिवज्जमाणस्स उक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं, असंखेजलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो । परिहारसुद्धिसंजदस्स जहण्णयं संजमट्ठाणं छेदोवट्ठावणसंजमाभिमुहस्स अणंतगुणं, बहूणि छट्ठाणाणि अंतरिय समुभवादो । तस्सेव उक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं । कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो। उवरि सामाइय-च्छेदोवट्ठावणियाणं छह स्थानोंका अन्तर करके उत्पन्न हुआ है। उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि ऊपर असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंका उल्लंघन करके उसकी उत्पत्ति होती है। संयमासंयमको प्राप्त होनेवालेका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, अनेक छह स्थानोंका अन्तर करके उसकी उत्पत्ति होती है। उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंके ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। संयमको प्राप्त करनेवाले कर्मभूमिज (आर्य) मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंके ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है । (संयमको प्राप्त करनेवाले अकर्मभूमिज, अर्थात् पांच म्लेच्छ खंडोंमें रहनेवाले, मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंके ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है । ) संयमको प्राप्त करनेवाले उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थानोंके ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। संयमको प्राप्त करनेवाले कर्मभूमिज (आर्य ) मनुष्यका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। छेदोपस्थापनसंयमके अभिमुख हुए परिहारविशुद्धिसंयतका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योकि, बहुतसे छह स्थानोका अन्तर करके वह उत्पन्न होता है। उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि, असंख्यात लोकमात्र छह स्थान ऊपर जाकर उसकी उत्पत्ति होती है। इसके ऊपर सामायिक छेदोपस्थापनसंयतोंका उत्कृष्ट संयमस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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