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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, १५. छेदोवट्ठावणियाणं संजमाणाणि)। सामाइय-च्छेदोवट्ठावणियाणं उक्कस्सयं संजमद्वाणमणंतगुणं । तं कस्स? सव्वविसुद्धस्स से काले सुहुमसांपराइयसंजमं पडिबजमाणस्स । एदेसिं जहण्णं मिच्छत्तं गच्छंतचरिमसमए होदि । तेणेत्थ तण्ण उत्तं । ०० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० । अंतरं । सुहमसांपराइयस्स एदाणि संजमट्ठाणाणि । तत्थ जहणं अणियट्टीगुणट्ठाणं से काले पडिवज्जंतस्स सुहुमस्स होदि । उक्कस्सं खीणकसायगुणं पडिवज्जमाणस्स चरिमसमए भवदि । । ०। एदं जहाक्खादसंजमट्ठाणं उवसंत-खीण-सजोगि-अजोगीणमेक्कं चेव जहण्णुक्कस्सवदिरित्तं होदि, कसायाभावादो । एदं संदिर्टि दृविय तिव्व-मंददाए अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो । तं जहा
सयमंदाणुभागं मिच्छत्तं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणं । तस्सेव उक्कस्सयं संजमट्ठाणं अणंतगुणं, तदो असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि गंतूग उप्पण्णत्तादो। असंजमसम्मत्तं गच्छमाणस्स जहणं संजमट्ठाणमणंतगुणं, असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि
(ये सामायिक छदोपस्थापनासंयमियोंके संयमस्थान है।) सामायिक छेदोपस्थापनासंयमियोंका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है।
शंका-सामायिक छेदोपस्थापनासंयमियोंका उत्कृष्ट संयमस्थान किसके होता
समाधान-अनन्तर कालमें सर्वविशुद्ध सूक्ष्मसाम्परायिकसंयमको ग्रहण करनेवालेके वह उत्कृष्ट संयमस्थान होता है।
इनका जघन्य मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवालेके अन्तिम समयमें होता है। इसी कारण उसे यहां नहीं कहा है। ००००००००००००००००। अन्तर । सूक्ष्मसाम्परायिकसंयमीके ये संयमस्थान हैं। उनमें जघन्य संयमस्थान अनन्तर कालमें अनिवृत्तिकरणगुणस्थानको प्राप्त करनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिक संयमीके होता है, और उत्कृष्ट स्थान क्षीणकषाय गुणस्थानको प्राप्त होनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिक संयमीके अन्तिम समयमें होता है ।। | यह यथाख्यातसंयमस्थान उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, इनके एक ही जघन्य व उत्कृष्टके भेदोंसे रहित होता है, क्योंकि, इन सबके कषायोंका अभाव है। इस संदृष्टिको रखकर तीव्रता व मन्दतासे अल्पवहुत्वको कहेंगे । वह इस प्रकार है
सर्वमन्दानुभागरूप मिथ्यात्वको प्राप्त करनेवाले जीवके जघन्य संयमस्थान होता है। उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है, क्योंकि वह उससे असंख्यातलोकमात्र छह स्थानोंका उल्लंघन करके उत्पन्न हुआ है। इससे अविरतसम्यक्त्वको प्राप्त करनेवाले जीवका जघन्य संयमस्थान अनन्त गुणा है, क्योंकि, वह असंख्यात लोकमात्र
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